● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
तुमने राम, कृष्ण, लक्ष्मण, हनुमान आदिक को देखा है? देखा था? तुम्हें अब तक इनसे क्या मिला है? इसके बाद भी तुम इन सभी के अन्धभक्त बने हुए हो और इनके नाम पर देश की शान्ति-सुरक्षा तथा जन-जन की आत्मिक शान्ति का अपहरण करते आ रहे हो? तुम्हें मालूम होना चाहिए, मात्र एक सर्वशक्तिमती है, जो जड़-चेतन का संचालन करती आ रही है।
तुमने जीवन-मृत्यु, अग्नि, वायु, नदी, सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, पर्वत, वृक्ष आदिक को तो देखे होंगे? प्रतिपल देखते आ रहे हो और इन सभी का अपने जीवन पर अच्छा-बुरा प्रभाव भी पा रहे हो; उनसे लाभ भी अर्जित कर रहे हो। वायु और जल से बड़ा देवता कौन है, जो तुम्हें जीवित बनाये हुए है? ‘अग्नि’ और ‘पृथ्वी’ से बढ़कर कौन शक्ति है, जो क्रमश: मृत्यूपरान्त (‘मृत्योपरान्त’ अशुद्ध है।) मनुष्य की दूषित देह को शुद्ध करती है और धरती के भीतर स्थान देती है, ताकि देह विकृत न हो सके। ये देवी-देव बाँटकर नहीं देखे जाते; किसी मे सामर्थ्य भी नहीं है। इनसे समाज का हर व्यक्ति लाभान्वित होता आ रहा है; क्योंकि इन तक तुम सब कट्टर विधर्मियों की छाया तक नहीं पड़ी है और न ही पड़ सकती है। इतना ही नहीं, तुम दुस्साहस करके भी इन देवी-देव को अपने खेमे मे नहीं ला सकते; क्योंकि उसी समय तुम्हें यही देवी-देव तुम्हारे कुकृत्यों का फल चखा देंगे, जबकि तुम्हारे राम, कृष्ण, हनुमान् आदिक वैसा कर ही नहीं सकते, वरना केवल ‘राम’ को अपनी बपौती मानकर-जानकर तुम सभी ने जिस आतंकवाद का परिचय दिया है, यदि वे तुम्हारे देव अस्तित्व मे रहते तो ऐसा दण्ड देते कि तुम्हारे पूर्वज भी ग्लानि-भाव के साथ तुम पर थूक रहे होते। तुम सब राम, कृष्ण, हनुमान आदिक के नाम पर अपने निकृष्ट कर्म कर सकते हो; परन्तु सर्वमान्य देवी-देव के नाम पर कदापि नहीं। साहस हो तो ‘वायु’ की गति को रोककर किसी भी मन्दिर की ओर मोड़ दो; साहस हो तो ‘सूर्य’ पर केवल अपना आधिपत्य स्थापित कर दिखा दो; साहस हो तो ‘पृथ्वी’ को किसी मन्दिर तक सीमित करके दिखा दो।
बताओ– इन सभी फलदायी देवी-देवों का तुम दिन मे कितनी बार स्मरण करते हो और ‘जय सिरीराम’ की तरह से इनके नामो का ‘क्रान्तिकारी’ जयघोष करते हो?
तथाकथित हिन्दुओ! तुम सभी कृतघ्न हो और इस कोटि के निन्द्य हो, जिसका वर्णन करने के लिए किसी भी कोश मे शब्द नहीं दिखते।
देश को अपने दुष्कृत्यों से आतंकित करने का बाज़ार समेट लो; अपना यह धन्धा बन्द करो और जनता को अपना जीवन जीने दो।
तुम सबने अपनी मुट्ठियों मे जिस धर्म की अफ़ीम को लेकर घूमने का धन्धा बना लिया है, वह दुकानदारी बहुत समय तक चलनेवाली नहीं है। तुम सभी का अपराधीकरण हो चुका है।
मत भूलो! चन्द लोभी और बीभत्स चरित्र के धनी, भौतिक सम्प्रभु लोग-द्वारा तुम सब ‘इस्तेमाल’ हो रहे हो। अब भी समय है, जनघाती भाव-विचार को त्यागकर अपना कायाकल्प कर लो; क्योंकि “वसुधैव कुटुम्बकम्”।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १० अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)