कट्टर मुसलमानो! जवाब दो!

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

तुम केवल एक ईश्वर ‘ख़ुदा’ को मानते हो, जिसका कोई आकार-प्रकार नहीं है। वैसे भी तुम लोग के ख़ुदा का कोई मूर्त रूप आज तक नहीं मिला है और यदि किसी ने जाने-अनजाने (‘अंजाने’ ग़लत है।) तुम्हारे ख़ुदा का चित्र बना भी दिया तो तुम सब मरने-मारने पर उतारू हो जाते हो। क्या तुम्हारा ख़ुदा कहता है– ख़ुदा का चेहरा दिखानेवाला गुनहगार है? तुम सब जब अपने ख़ुदा की इबादत करते हो तब उसका कोई आकार-प्रकार तो तुम्हारे सामने रहता ही होगा, फिर वह ख़ुदा कैसे हो गया; क्योंकि तुम्हारा ख़ुदा तो निराकार होता है?

तुम कहते हो– हमारा ‘क़ुर्आन शरीफ़’ आकाश से उतरी हुई किताब है। तुममे से उसे कितनो ने आकाश से उतरते हुए देखा है? तुम जिन शैक्षिक पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करके अध्यापक, चिकित्सक, अभियन्ता, व्यवसायी आदिक की नौकरी प्राप्त करके अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करते हो, उन पुस्तकों की पूजा करने से तुम सबका मान घट जाता है क्या? जिस धरती मे उपजे अन्न को भोजन के रूप मे ग्रहण करते हो, उस धरती के प्रति तुममे ईश्वरीय श्रद्धा क्यों नहीं उत्पन्न होती? क्या तुम्हारे ख़ुदा ने आदेश किया है– जीवहत्या करके त्योहार-पर्व-उत्सव इत्यादिक का आयोजन करो। अब बताओ– जब तुम्हारा भगवान् एक ही ख़ुदा है और तुम उसके अतिरिक्त और किसी की इबादत नहीं करते तब फिर सूफ़ी सन्त/ दरवेश/ पीर/ अली के क़ब्र पर बनाये गये दरगाह मे इबादत करने के लिए ज़ियारत करने क्यों जाते हो? मन्नत मागने क्यों जाते हो? यह भी बताओ– जिस-जिस मज़ार पर तुम सब जाते हो, उसकी लम्बाई-चौड़ाई-ऊँचाई-गहराई तो होती ही होगी तो क्या वह आकार-प्रकार मे बँधा नहीं होता? फिर वह मूर्त रूप हुआ न? वहाँ तुम्हारा कौन-सा दूसरा ख़ुदा रहता है?

तुम सभी ‘मुसलमान’ शब्द का प्रयोग करते हो; तुम्हारे पवित्र ग्रन्थ ‘क़ुर्आन’ के ११४ सूराओं (अध्यायों) के कुल ६,२३६ आयतों (श्लोकों) के कुल ३४,०७४० शब्दों मे से किस स्थल पर ‘मुसलमान’ शब्द का प्रयोग हुआ है? यदि नहीं तो यह मुसलमान शब्द एक मज़्हब-विशेष (‘मज़हब’ अशुद्ध है।) के लिए रूढ़ कैसे बन गया?

मुसलस्ल (पूर्णत:) ईमान जिसमे हो, वह मुसलमान है। अब प्रश्न है, ऐसे कितने लोग हैं, जिनमे अपने और दूसरे के प्रति पूरी ईमानदारी है? सच तो यह है कि इस जगत् मे ऐसा एक भी व्यक्ति नहीं है, जो पूर्णत: सत्यनिष्ठ हो। ऐसे मे, स्वयं को ‘मुसलमान’ कहना उचित है?

एक विषय का उल्लेख करना प्रासंगिक हो जाता है। भारत-पाकिस्तान के बीच जब हॉकी अथवा क्रिकेट अथवा अन्य किसी खेल की प्रतियोगिता होती है तब मुसलमानो का एक वर्ग ऐसा होता है, जो भारत की हार पर ख़ुशी मनाता है और पाकिस्तान की हार पर मातम। ऐसा क्यों? क्या यह भारत मे सम्मानपूर्वक जीनेवाले मुसलमानो की भारतराष्ट्र के प्रति कृतघ्नता नहीं है? जिस धरती पर जन्म लिये; पले-बढ़े और भविष्य बनाये, उस मातृ और जन्मभूमि के प्रति विश्वासघात यदि कोई मुसलमान करता है तो ज़ाहिर है, उसका मुसलस्ल ईमान रह ही नहीं गया।

जिस वायु और जल से जीवन पाते हो; जिस धरती और वृक्ष से अन्न और फल पाते हो; जिस सूर्य और चन्द्रमा से ऊष्मा और शीतलता पाते हो, वह तुम्हारे ख़ुदा से कहीं बहुत बढ़कर है। ख़ुदा से पाने के लिए मागते हो; परन्तु हमारे वास्तविक ख़ुदा यही हैं, जो बिना मागते ही तुम्हें देते रहते हैं।

कट्टरवादी मुसलमानो! बिलकुल (‘बिल्कुल’ अशुद्ध है।) मत भूलो कि तुम्हें दो गज़ ज़मीन ‘पृथ्वी’ की कृपा से ही नसीब होती है।

तुम सबकी कट्टरता ही तुम्हें बरबाद कर देगी। ‘अल्लाहो अकबर’ का नारा जिस आक्रामकता के साथ लगाते हो, उसमे ‘आतंक’ का बीभत्स (‘वीभत्स’ अशुद्ध है।) रूप झाँकता हुआ-सा दिखता है।

तुम सभी अपनी फित्रत (‘फ़ितरत’ अशुद्ध है।) को बदलो; क्योंकि “वसुधैव कुटुम्बकम्” से बढ़कर कुछ भी नहीं।

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १० अक्तूबर, २०२२ ईसवी।)