‘आवाज उठाने की स्वतंत्रता’ ही आज के समय में ‘गाँधीजी’ का जंतर है

डॉ० निर्मल पाण्डेय (इतिहास-व्याख्याता/लेखक)

डॉ• निर्मल पाण्डेय

विद्रोह दरअसल ‘विरोध की वृत्ति/प्रवृत्ति’ की उन्नत अभिव्यक्ति है। विरोध करना सही मायनों में हमारे-आपके जीवित होने का प्रमाण है।

और जो व्यवस्था ‘बिना किसी तर्क’, ‘बिना किसी बहस’ के विरोध के स्वर को दबाती रहेगी, वो ‘आप-हम-सब’को एक न एक दिन मतिशून्य, भावशून्य अवश्य कर देगी। फ़िर ये सिस्टम-ऐसी व्यवस्था कोई ‘अश्विनीकुमारो’ की तरह संजीवनी से लैस तो है नहीं कि बाद में जब आप चाहें ये आपको जीवित कर दे।

सच और न्याय की राह में आने वाली अड़चनों को लेकर हमेशा सतर्क रहिए, दबे-झुके-गिरे तो गये काम से।..’ग़लत’ के खिलाफ़ जूझना होगा हमें।

हमें समझना होगा कि, देश-समाज के आखिरी छोर पर खड़ा आदमी/ राष्ट्र रुपी सूत्र की सबसे कमजोर कड़ी/लास्ट मैन आन द पेरिफेरी या फिर यूँ कहें कि अन्त्योदय के हक़ के लिए ‘आवाज उठाने की स्वतंत्रता’ ही आज के समय में ‘गाँधीजी का जंतर’ है।

अपने अन्दर के गाँधी को जगाइए-बाहर लाइए,
गांधीवाद के सिद्धांतों की लाठी बनाइए
और ‘अन्याय के विरुद्ध’ बरसिए
घुमड़-घुमड़,धमड़-धमड़;
पुण्यतिथि पर गाँधीजी का पुण्य स्मरण। ?