टण्डन जी दिव्य और यश: शरीर से हमारे साथ हैं– विभूति मिश्र

राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन की जन्मतिथि १ अगस्त पर आयोजित बौद्धिक परिसंवाद

हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग की ओर से १ अगस्त को सम्मेलन के प्रधानमन्त्री विभूति मिश्र की अध्यक्षता में ‘राजर्षि टण्डन जी की सत्ता और महत्ता’ विषयक सारस्वत आयोजन किया गया, जिसमें सम्मेलन के प्रबन्धमन्त्री कुन्तक मिश्र ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कहा “टण्डन जी के मन में प्रादेशिक भाषाओं के प्रति समादर था। वे स्वयं अरबी- फ़ारसी भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान् थे। उनका दृढ़ मत था कि भारत की राष्ट्रभाषा एक स्वदेशी भाषा हिन्दी ही बन सकती है।”

सम्मेलन के प्रधानमन्त्री विभूति मिश्र ने बताया, “आज कल्पना के नेत्रों में टण्डन जी का वह भव्य स्वरूप आ-आकर प्रताड़ित कर रहा है कि तुम हिन्दीवाले ही हिन्दी के अधोगति के कारण हो। तब विचार करने पर लगता है कि वास्तव में, हिन्दी के लिए हम लोग ने अभी तक कुछ नहीं किया है। टण्डन जी दिव्य और यश: शरीर से हमारे साथ हैं।”

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने कहा, “राजर्षि टण्डन का व्यक्तित्व गम्भीर था। भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रति अगाध श्रद्धा उनके जीवन की अमूल्य निधि थी।”

डॉ० रामनरेश त्रिपाठी ने बताया, “टण्डन जी नैतिकता और आदर्श के पुजारी थे। वे नौकरी के लिए औरों को छोड़ दीजिए, स्वयं अपने परिवार के व्यक्तियों की सिफ़ारिश करना पाप समझते थे।”

डॉ० सुरेशचन्द्र द्विवेदी ने कहा, “टण्डन जी एक कुशल वक्ता, सन्त राजनेता तथा विदेह-जैसे वीतरागी मानव थे। शायद कुछ लोग जानते हैं कि वे एक क्रान्तिकारिक कवि भी थे।”

डॉ० पूर्णिमा मालवीय ने कहा, “टण्डन जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन का संचालन कई वर्षों तक पूर्ण मनोयोग से किया था। उनकी देख-रेख में सम्मेलन का कार्यक्षेत्र देश के कोने-कोने में फैल गया था।”