वर्तमान राजनीति का सटीक विश्लेषण करती कविता- राजनीति हो गई भिखारिन , जनता के लहू की प्यासी है

जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद ०६/१०/२०१७-

राजनीति हो गई भिखारिन ,

जनता के लहू की प्यासी है।
चोर उचक्के राजा बन गए ,
सारी जनता हो गई दासी है।।
देख रहा कुचक्र को वह तेरे,
जो ऊपर बैठा अविनाशी है।
किसान को देखो धूप में तपता,
बदन ही जिसका काबा – काशी है।।
पढ़े-लिखे बेरोजगार इंसान का,
जीवन लगता तो जैसे फाँसी है।
ये सत्ता का सिंहासन तो बन्धु ,
केवल बना मेघ की राशि है।।
अगले 5 बरस में देखो ,
पिछले के लिए हुई यह बासी है।
जनता को तो पितृवत् समझो,
मातृभूमि तो माँ सी है ।।