इस समय पूरे देश में असत्य पर सत्य की जीत का त्यौहार दशहरा मनाया जा रहा है । देश के हर जिले हर गांव में रावण दहन का आयोजन वहां की मान्यताओं के अनुसार होता है। लेकिन विभिन्न परंपराओं और दर्जनों भाषाओं वाले इस देश में हरदोई एक जिला ऐसा भी है, जहां पर आज तक रावण दहन नहीं हुआ, हालांकि शाहाबाद कस्बे में चार साल से पुतला दहन का कार्यक्रम शुरू हुआ है। विजयदशमी पर शहर में रावण नही जलाया जाता है, लेकिन जिले की प्राचीन नुमाइश मेले के दौरान रामलीला में रावण का दहन जरूर किया जाता है।
हरदोई इसे पौराणिक काल में हरिद्रोही के नाम से जाना जाता था। इसका नाम इसलिए ऐसा पड़ा, क्योंकि ये नगर था दानवराज हिरणकश्यप की राजधानी। जिसने अपने को ईश्वर घोषित कर दिया था। वो न सिर्फ अपने प्रजाजनों बल्कि अपने पुत्र प्रह्लाद का भी उत्पीड़न करता था। प्रह्लाद की पुकार पर भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरणकश्यप को उसके किये का दंड दिया। कालांतर में हरिद्रोही का नाम हरदोई पड़ा।जिले के कई धर्मशास्त्री जिनसे हमने बात कि उससे रोचक जानकारी सामने आई। उन्होंने बताया कि पुरानी परंपरा चली आ रही है। ‘र’ नाम के शब्द से ही इस जिले को नफरत थी। जिसके चलते न तो राम का नाम लिया जाता था और ना ही रावण का दहन किया जाता था। उनके मुताबिक रावण हिरणकश्यप का वंशज था, इसी वजह से यहां रावण दहन अपराध माना जाता है।लेकिन शाहाबाद कस्बे में रावण के पुतले के दहन का कार्यक्रम चार साल से शुरू किया गया है।यह पुतला रात को जलाया जाता है और इस त्यौहार को मनाने के लिए लोग खासे उत्साहित रहते है।