कलियुग के यथार्थ का उद्घाटन करते युधिष्ठिर के उत्तर

ज्ञानगंगा

आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-

   यह कथा तब की है, जब पाण्डव अज्ञातवास की अवधि व्यतीत कर रहे थे। उनके सामने समस्या थी, एक ऐसा सुरक्षित स्थान ढूँढ़ने की, जहाँ तक कोई पहुँच न सके; फिर क्या था, द्रौपदी-सहित पाँचों पाण्डव अज्ञात स्थान की खोज करते-करते, एक घने जंगल में प्रविष्ट कर गये थे।  
      अकस्मात् आकाश-मार्ग से शनिदेव की दृष्टि उन पर पड़ी थी । शनिदेव ने सोचा--- क्यों न उनकी परीक्षा की जाये और समझा जाये कि उन पाँचों पुरुषों में सर्वाधिक बुद्धिमान् कौन है। 
       ऐसा विचार आते ही, उन्होंने अपने मन्त्र-प्रभाव से एक भव्य मायावी  महल बना लिया था। उस महल के चार विशाल कोने थे :-- पूर्व, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण। महल के मुख्य द्वार पर स्वयं शनिदेव प्रहरी की वेशभूषा में खड़े हो गये थे। 
  अचानक, सभी की दृष्टि उस महल पर पड़ी। किसी आशंका की सम्भावना को देखते हुए, युधिष्ठिर ने सर्वाधिक बलशाली भीम को उस अनोखे महल को देखने के लिए भेजा था।
  भीम महल के मुख्य द्वार पर जैसे ही पहुँचे, वहाँ प्रहरी ने उन्हें रोक दिया।
   इस पर भीम ने अपनी उत्सुकता प्रकट करते हुए कहा--- मुझे इस अद्भुत महल को देखना है!
शनिदेव ने कहा--- महल में प्रवेश करने से पूर्व हमारी कुछ शर्तें हैं।
इस पर भीम ने उनकी शर्तें जाननी चाहीं।
प्रहरी ने उन शर्तों को बताना शुरू किया :---
पहली शर्त --- इस महल में चार कोने हैं, जिनमें से आप अपने इच्छानुसार एक ही कोना देख सकते हैं।
दूसरी शर्त--- आपको महल में जो कुछ भी दिखायी देगा, आप उसके निहितार्थ को सुस्पष्ट करेंगे।
तीसरी शर्त--- आप यदि सुस्पष्ट नहीं कर पायेंगे तो शर्तानुसार आपको बन्दी बना लिया जायेगा।
भीम ने उन तीनों शर्तों को स्वीकार कर लिया।
भीम ने सर्वप्रथम महल के पूर्व-कोने का भ्रमण करने का निर्णय किया था।
वहाँ पहुँचते ही भीम ने उन नयनाभिराम अनोखे पशु-पक्षियों और फूल-फलों के भार से झुके वृक्षों को देखा था। कुछ दूर आगे बढ़ने पर उन्हें तीन कुएँ,अगल-बग़ल में छोटे कुएँ तथा मध्य में एक बड़ा कुआँ दिखायी देता है। भीम देखते हैं--- मध्यवाले बड़े कुएँ में पानी का उफान आता है और दोनों छोटे ख़ाली कुओं को पानी से लबालब भर देता है, फिर कुछ देर बाद दोनों छोटे कुओं में उफान आता है तब ख़ाली पड़े बड़े कुएँ का पानी आधा रह जाता है। इस क्रिया को भीम कई बार देखते हैं; परन्तु समझ नहीं पाते। वे लौटने लगते हैं।
पूर्व-शर्त के अनुसार, प्रहरी भीम से प्रश्न करता है--- आपने क्या-क्या देखा था ?
      भीम का उत्तर था--- महाशय! मैंने पशु-पक्षी, फल-फूल पेड़-पौधे आदिक देखे थे , जिन्हें मैंने पहले कभी नहीं देखे थे। वहाँ मेरे सामने एक आश्चर्यजनक दृश्य था--- छोटे कुएँ पानी से भर जाते थे; परन्तु बड़ा कुआँ नहीं भर पाता था। इसका कारण मैं समझ नहीं पा रहा हूँ।
      प्रहरी ने कहा--- आप शर्त के अनुसार बन्दी हो गये हैं। भीम को उसने एक बन्दीगृह में बैठा दिया।
भीम को गये हुए पर्याप्त समय हो चुका था। इस पर सभी को चिन्ता होने लगी। इस बात का पता लगाने और उस महल को देखने के लिए महान् धनुर्धारी अर्जुन को भेजा गया।
      उनके सामने भी वही शर्तें प्रस्तुत की गयी थीं।
अर्जुन पश्चिमी कोने की तरफ़ चले गये।
        वहाँ पहुँचकर अर्जुन देखते हैं--- एक खेत में दो फ़सलें उग रही थीं :-- पहली तरफ़, बाजरे की फ़सल थी और दूसरी तरफ़, मक्के की; आश्चर्य का दृश्य यह था--- बाजरे के पौधों में भुट्टे लगे हुए थे और मक्के के पौधों से बाजरा निकल रहा था। उनका कारण न जानकर, अर्जुन चुपचाप लौट आये।
     प्रहरी ने पूछा--- आपने क्या-क्या देखा था ?
अर्जुन ने उत्तर दिया---महाशय! मैंने सब कुछ देखे-समझे परन्तु बाजरा और मक्का का रहस्य नहीं समझ सका हूँ।
शर्त के अनुसार प्रहरी ने अर्जुन को भी बन्दी बना लिया।
उसी क्रम में नकुल आये और उन्होंने भी महल देखने की अभिलाषा प्रकट की।
     शर्त को स्वीकार करते हुए, नकुल उत्तर-कोना की ओर गये। वहाँ उन्होंने देखा--- बहुत सारी श्वेत गायें अपनी बछियों के साथ घूम-टहल रही थीं। जब उन गायों को भूख-प्यास लगती थी तब वे अपनी छोटी-छोटी बछियों के दूध पी लेती थीं। नकुल हैरान रहकर लौट आये।
उस प्रहरी ने पूछा--- आपने क्या-क्या देखा था ?
     नकुल बोले--- महाशय! गाय बछियों के दूध पीती हैं, यह समझ नहीं पा रहा हूँ। नकुल को भी बन्दी बना लिया गया।
      सहदेव की बारी थी। वे भी आये और बोले--- मुझे महल देखना है और वे दक्षिण-कोना में गये। वहाँ वे देखते हैं--- एक स्वर्णशिला पर चाँदी के एक सिक्के पर एक नौका टिकी हुई है; नौका डगमगा रही है; किन्तु गिर नहीं रही है। उस नौका को छूने पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। उस दृश्य के निहितार्थ को सहदेव समझ नहीं पाये और लौट आये। सहदेव भी बन्दी बना लिये गये।
       उधर, बहुत अधिक विलम्ब हो जाने के बाद भी जब चारों भाई नहीं लौटे तब द्रौपदी-सहित युधिष्ठिर को चिन्ता हुई। वे भी द्रौपदी के साथ उस मायावी महल की ओर चल पड़े।
      प्रवेशद्वार पर प्रहरी ने उन्हें बढ़ने से रोक दिया। युधिष्ठिर ने जब अपने भाइयों के विषय में पूछा तब प्रहरी ने सारी बातें बता दीं। युधिष्ठिर के कहने पर प्रहरी ने बन्दी अवस्था में चारों भाइयों को ला खड़ा किया और कहा--- इन्हें मैं तभी मुक्त करूँगा, जब सभी प्रश्नों के उत्तर मुझे प्राप्त हो जायेंगे।
       युधिष्ठिर ने भीम से पूछा--- तुमने क्या-क्या देखा था?
      भीम ने उस बड़े कुएँ के बारे में बताया।
युधिष्ठिर ने उस प्रहरी की ओर देखते हुए उत्तर दिया था--- उसका निहितार्थ यह है कि कलियुग में एक बाप दो बेटों का पेट तो भर देगा; परन्तु दो बेटे मिलकर भी एक बाप का पेट नहीं भर पायेंगे।
      प्रहरी ने उस उत्तर से सन्तुष्ट होकर भीम को छोड़ दिया।
      युधिष्ठिर ने अर्जुन से पूछा--- तुमने क्या-क्या देखा था?
      उसने दोनों अकल्पनीय फ़सलों के बारे में बताया था तब युधिष्ठिर ने कहा--- यह भी कलियुग में घटित होनेवाला है। वंश-परिवर्त्तन अर्थात् ब्राह्मण के घर शूद्र की लड़की और शूद्र के घर वैश्य की लड़की ब्याही जायेंगी।
सन्तोषजनक उत्तर पाकर अर्जुन को भी मुक्त कर दिया गया। युधिष्ठिर ने नकुल से पूछा--- तुमने क्या-क्या देखा था?
       उसने बछियों के दूध पीनेवाले गायों की बात बता दी।
       युधिष्ठिर ने कहा--- कलियुग में माताएँ अपनी बेटियों के घर में पलेंगी; बेटी का दाना खायेंगी तथा बेटे उनकी उपेक्षा करेंगे।
       उस सार्थक उत्तर के फलस्वरूप नकुल को भी मुक्ति मिल गयी।
       युधिष्ठिर ने सहदेव की ओर देखा तब उन्होंने स्वर्णशिला और नौका का वृत्तान्त सुनाया। इस पर युधिष्ठिर बोले--- कलियुग में पाप धर्म को दबाता रहेगा; फिर भी धर्म अक्षुण्ण बना रहेगा; समाप्त नहीं होगा।

(सर्वाधिकार सुरक्षित-- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३१ मई, २०२० ईसवी)