देश के प्रतिष्ठित हिन्दीविज्ञान-लेखक शुकदेव प्रसाद जी का शरीरान्त हुआ!

आज (२३ मई) शुकदेव जी के निधन की सूचना वरिष्ठ सम्पादक, छात्रनेता, अग्रजसम प्रभाकर भट्ट जी से लगभग तीन घण्टे-पूर्व ही प्राप्त हो चुकी थी; परन्तु उसकी पुष्टि नहीं हो पा रही थी; अन्तत:, १०.३० रात्रि के लगभग मैने अपने विश्वस्त स्रोत से पुष्टि करा ली थी।

शुकदेव जी मेरे सहकर्मी थे। हिन्दीविज्ञान-लेखन मे हम एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी हुआ करते थे; किन्तु हम दोनो के मध्य कभी किसी प्रकार की विसंगति की रेखा नहीं खिंच पायी थी। वे जब भी मिलते थे, यही प्रश्न करते थे, “और पृथ्वीनाथ! इन दिनो क्या लिख रहे हो?”

लगभग चालीस वर्षों-पूर्व हम प्राय: उनके एलनगंज, प्रयागराज-स्थित आवास पर वैज्ञानिक विषयों पर संवाद करते थे और चायपान के अनन्तर ही मुझे जाने देते थे। उनकी तीन पत्रिकाएँ:– ‘विज्ञान भारती’, ‘विज्ञान वैचारिकी’ तथा ‘पर्यावरण-दर्शन’ उनके पुरुषार्थ की परिसूचिका थीं। ‘पर्यावरण-दर्शन’ का शुकदेव जी और मै सम्पादन किया करते थे। उनकी विज्ञान एन्साइक्लोपीडिया तथा बालसुलभ वैज्ञानिक पुस्तकें अतीव चर्चित हुईं। उन्हें ‘आत्माराम पुरस्कार’, ‘सोवियत लैण्ड एवार्ड’ आदिक बड़ी संख्या मे पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका था।

उनसे यदि मेरी कोई शिकायत रही तो यही कि उन्होंने अपने भविष्य और अपनी ज़िन्दगी को स्वस्थ मार्ग से पृथक् कर लिया था, जो उनके लिए भविष्यघातक सिद्ध हुआ। यदि मेरी इस शिकायत को स्वीकार कर लिये होते तो आज विश्व मे उनके-जैसा कोई हिन्दीविज्ञान-लेखक नहीं होता। यही कारण था कि मै उनसे पूरी तरह से कट चुका था।

अपने मित्र, सहकर्मी तथा अग्रजसम हितैषी को खोकर मन उद्विग्न और क्षोभ से भर गया है।

वरिष्ठ मित्र! आपने चरम सत्य से साक्षात् कर लिया है। आपके साथ मेरी खट्टी-मीठी नाना स्मृतियाँ जुड़ी हुई हैं। आपके जाने के बाद भी जीवन्त बनी रहेंगी। आप पुनर्जन्म लेकर मर्त्यलोक मे पधारें और अपने उसी पुरुषार्थ के साथ किसी अन्य भूमिका मे लोकहित करें– आपके प्रति मेरी यही भावाञ्जलि है।