सारस्वत हस्ताक्षर डॉ० विष्णु पंकज जी का शरीरान्त हुआ!


◆ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

स्वनामधन्य डॉ० विष्णु पंकज जी का कर्तृत्व श्लाघनीय रहा है। वे जीवनपर्यन्त एक शिक्षक की भूमिका का सम्यक् निर्वहण करते रहे। वे सम्पादन-कला के शक्त हस्ताक्षर थे। डॉ० पंकज जी की एक मर्मज्ञ साहित्यशिल्पी के रूप मे सर्वत्र ख्याति रही है। उनकी एक अनुकरणीय विशेषता थी, और वह यह कि वे जब भी स्वयं से सम्बद्ध किसी कृति का प्रणयन करते अथवा कराते थे तब वे उन सभी रचनाधर्मियों का स्मरण किसी-न-किसी रूप मे करते थे, जिन्होंने उनके विषय मे एक वाक्य ही क्यों न लिखा था।

डॉ० विष्णु पंकज जी की लिखावट को देखकर ही उनकी पहचान हो जाती थी। प्रत्येक अक्षर को कुछ तिर्यक् रूप मे सुलेख के रूप मे प्रस्तुत करना, उनका लेखन-वैशिष्ट्य था। शीर्षक और उप-शीर्षक को रंगीन स्याही मे उपयुक्त ढंग से लिखकर रेखांकित करते हुए, सम्बन्धित लेखादिक को समाचारपत्र-कार्यालयों मे प्रेषित करते रहना, उनका लेखकीय स्वभाव था।

अस्सी के दशक मे मै ‘दैनिक जागरण’, रीवा-भोपाल (मध्यप्रदेश) का साहित्य-प्रभारी और फ़ीचर-सम्पादक था, तब मैने डॉ० पंकज जी के पास एक पत्र भेजा था, जिसमे उनसे एक स्तम्भकार के रूप मे साहित्यिक लेखन करने का आग्रह किया था। उन्होंने अपने लेख भेजने आरम्भ कर दिये थे। उस स्तम्भ का नाम ‘साहित्य-परिशीलन’ था। उनमे वृन्दावनलाल वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी, बनारसी दास चतुर्वेदी आदिक ख्याति-लब्ध साहित्यकारों से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण विवरण हुआ करते थे। उन दिनों विश्रुत क़लमकार डॉ० विष्णु पंकज जी की जितनी भी पुस्तकें प्रकाशित होती रहीं, सभी की दो-दो प्रतियाँ भेजते रहे और उनका समीक्षण ‘दैनिक जागरण’ के माध्यम से होता रहा। उनकी यह सदाशयता रही कि मैने जहाँ कहीं भी उनके और उनकी कृतियों के उल्लेख किये थे, उन्हें वे अपनी सम्बन्धित कृतियों मे ज्यों-के-त्यों उद्धृत करते रहे, जो कि लेखकीय धर्म का विशिष्ट पक्ष है और उस लेखक के आचरण की सभ्यता भी।

कुछ दशक-पूर्व जब जयपुर के एक प्रकाशक ने ‘रचना प्रकाशन’ से मेरा एक कहानी-संग्रह ‘फुलमो’ का प्रकाशन किया था तब मेरी डॉ० विष्णु पंकज जी से उनके निवासस्थान पर भेंट हुई थी, जो कि आत्मीय थी।

वे मेरे ‘कोशागार’ (ह्वाट्सऐप) से भी जुड़े हुए थे। मैं उनके ‘कोशागार’ मे शब्द सम्प्रेषित करता था और वे प्रकृति-निधि लुटाते रहते थे या फिर देवी-देव के कल्याणमय चित्र का प्रेषण करते रहते थे, जिससे उनके निर्मल व्यक्तित्व, उदात्त-उदार चरित्र का उद्घाटन होता रहता था। २४ अप्रैल, २०२२ ई० को उनका संदेश और कृपादृष्टि का बोध इस रूप मे हुआ था :–
”शुभ रविवार
आप सभी को रविवार सुबह की हार्दिक शुभकामनाएं
भगवान सूर्यदेव की कृपा आप पर सदैव बनी रहे
ऊँ
सूर्याय नम:”
ऊपर गुलाब की कली खिली हुई
और नीचे शक्तिरूपा देवी आशीर्वाद देने की मुद्रा मे लक्षित हो रही थीं।

२५ अप्रैल, २०२२ ई० को एक चित्र और सूचना प्राप्त हुई थी। समय अपराह्ण मे ३ बजकर १४ मिनट का था। सूचना थी, “मेरे पापा नहीं रहे”
मुझे सहसा विश्वास नहीं हो रहा था कि मृदुभाषी डॉ० विष्णु पंकज जी का शरीरान्त हो चुका होगा। मैने लिखा था, “श्रद्धेय के प्रति भावांजलि अर्पित करता हूँ।”

२६ अप्रैल को अपराह्न २.२७ पर अँगरेज़ी लिपि मे एक संदेश भेजा गया था, “Agar apko Koi shok sandensh bejana chahate h to app esie number par baj sakte h”
मैने उस संदेश को पढ़ने के बाद प्रश्न किया था, “डॉ० विष्णु पंकज जी का निधन हुआ है क्या?” इसका मुझे कोई उत्तर नहीं मिला था। मैंने १७ मिनट-बाद पुन: प्रश्न किया था, “आपके पापा जी का नाम क्या है? कितने वर्ष की आयु मे उनका निधन हुआ है? उनका निधन कहाँ और कैसे हुआ है? कृपया यह जानकारी भेज दें, ताकि शोक-आयोजन करने मे सुविधा हो सके।” फिर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी। मैने इस बार आपने उक्त प्रश्नो के नीचे प्रश्नात्मक चिह्न (?) अंकित करके भेज दिया था, तब जाकर उत्तर मिला, “Dr. Vishnu Bhagwan Pankaj, 81 Years,
Lekhak Patrakar, sahitaykar, Govt Retired Teacher”
मृत्यु को संसार का ‘परम सत्य’ कहा गया है। मुझे भी स्वीकार करना पड़ा।
सम्पर्क– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
‘सारस्वत सदन’
२३५/११०/२-बी, अलोपीबाग़, प्रयागराज– २११ ००६
यायावरभाषक-संख्या– ९९१९०२३८७०
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