● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
आपने कल के अंक मे पढ़ा था कि जालसाज़ औरत पूजा खेडकर को संघ लोक सेवा आयोग की ओर से छ: बार अवसर दिये गये थे कि वह अपनी विकलांगता का प्रमाण प्रस्तुत करने के लिए शासकीय चिकित्सालय एम्स मे जाकर परीक्षण कराकर उसकी रिपोर्ट आयोग को सौँप दे; परन्तु वह हर बार बहाना करके बच निकलती थी।
अब आगे पढ़ेँ– संघ लोक सेवा आयोग ने तंग आकर अन्तत:, क्या निर्णय किया तथा पूजा खेडकर-प्रकरण की वर्तमान स्थिति क्या है?
संघलोक सेवा आयोग ने जालसाज़ औरत पूजा खेडकर की बहानेबाज़ी से तंग आकर उसकी अवैध स्वास्थ्य-रिपोर्ट निरस्त कर दी थी। उसने पूजा का समूचा प्रकरण ‘कैट’ (सेण्ट्रल ऐडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल) के पास भेज दिया था। ‘कैट’ ने भी उस रिपोर्ट की वैधता पर गम्भीर प्रश्नचिह्न लगा दिये थे। उसके बाद भी ‘कार्मिक एवं प्रशिक्षण-विभाग’ (डी० ओ० पी० टी०) की ओर से पूजा खेडकर की प्रोबेशन-अवधि मे ही उसे सीधे जून, २०२४ ई० मे महाराष्ट्र- कैडर देते हुए, पुणे मे असिस्टेण्ट कलेक्टर के पद पर नियुक्ति का आदेश कर दिया गया था। उल्लेखनीय है कि यह विभाग सीधे पी० एम० ओ० (प्रधानमन्त्री-कार्यालय) के अन्तर्गत आता है, जिसके प्रमुख प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी हैँ। ऐसे मे, प्रश्न है, इतना बड़ा पद किसी को बिना नरेन्द्र मोदी के संज्ञान मे किये कैसे दिया जा सकता है?
इतना ही नहीँ, पूजा खेडकर ने पुणे कलेक्टरेट मे जो गुण्डागर्दी की थी, उसकी शिकायत मुम्बई के मुख्य सचिव से की गयी थी, जो सही निकली; परन्तु प्रकरण को दबाने के उद्देश्य से पूजा खेडकर का स्थानान्तरण आनन-फ़ानन मे आदेश जारी कर, पुणे से वाशिम कर दिया गया था। यह घटिया प्रकरण सरकारी स्तर पर यहाँ भी लगभग दबा दिया गया था; लेकिन पुणे-कलेक्टरेट मे पूजा खेडकर ने जो नंगा नाच किया था, उसकी ख़बर मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हो गयी थी, जिसे लेकर उसकी माँ मीडियाकर्मियोँ पर ही चढ़ाई कर दी; फिर क्या था! मीडियाकर्मियोँ ने उसके परिवार के गड़े मुरदे उखाड़ने शुरू कर दिये थे। उन्होँने कुछ चित्र और वीडियो ढूँढ़ निकाले थे, जिसमे उसकी माँ मनोरमा खेडकर पिस्टल लहराते हुए, किसी को अपमानित कर रही थी। इसे भी मीडिया मे प्रकाशित और प्रसारित कर दिया गया। उसकी माँ को जब इसका पता हुआ तो वह भाग खड़ी हुई; मगर पुलिस ने खोज निकाला और कारागार मे डाल दिया।
इस बीच, संघलोक सेवा आयोग के अध्यक्ष मदन सोनी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। ग़ौर करने-लायक़ प्रकरण है कि एक इण्टरव्यू मे आरोपित पूजा खेडकर ने बताया था कि जिस साक्षात्कार बोर्ड मे उसका इण्टरव्यू था, उस पाँच सदस्यीय बोर्ड मे कथित त्यागपत्र देनेवाले आयोग-अध्यक्ष मनोज सोनी प्रमुख थे, जिन्हेँ नरेन्द्र मोदी का क़रीबी माना जाता है। बकौल पूजा :– मनोज सोनी उससे प्रश्न करते रहे। उससे किसी अन्तरराष्ट्रीय विषय पर वा घुमावदार प्रश्न नहीँ किये गये थे। उसके हर उत्तर पर मनोज सोनी ‘ह्वेरी गुड’ बोलते रहे। अब प्रश्न है, मनोज सोनी ने किसके इशारे पर पूजा खेडकर का सतही इण्टरव्यू किया था? उन्हेँ पूजा मे कैसी रुचि थी, जो स्वयं उससे इण्टरव्यू करने पहुँच गये? उन्होँने पूजा खेडकर से कैसे-कैसे प्रश्न किये थे? अचानक, मनोज सोनी को इस्तीफ़ा क्योँ देना पड़ा? इन सारे प्रश्नो के उत्तर सामने आने चाहिए।
अब ‘दाल मे काला’ ही नहीँ, बल्कि ‘काला मे दाल’ दिख रही है; यानी समूची दाल ही काली दिख रही है। ग़ौर करने की बात है– संघलोक सेवा आयोग और कैट-द्वारा पूजा खेडकर के प्रपत्रोँ को अवैध मानकर निरस्त करने के बाद, प्रधानमन्त्री-कार्यालय के अन्तर्गत आनेवाले ‘कार्मिक एवं प्रशिक्षण-विभाग’ की ओर से उन्हीँ प्रपत्रोँ को सीने से लगाकर उस जालसाज़ औरत को पुणे मे डिप्टी कलेक्टर के पद पर नियुक्ति किसके इशारे पर दी गयी थी? अब आश्चर्य होता है– जब वही अवैध नियुक्ति उक्त विभाग और प्रधानमन्त्री-कार्यालय के गले का फाँस बनने जा रही है तब उसी चहेती के विरुद्ध २६ जुलाई को ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी करते हुए, उससे २ अगस्त तक आरोपोँ के जवाब देने के लिए कह दिया गया है? इसे कहते हैँ, ‘विशुद्ध दोगलापन’। संघ लोक सेवा आयोग का कथित अध्यक्ष मनोज सोनी ने प्रधानमन्त्री-कार्यालय से सम्बन्धित किस व्यक्ति को बचाने के लिए इस्तीफ़ा दिया था? हम इससे इन्कार नहीँ कर सकते कि इस प्रकरण मे संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष-पद से त्यागपत्र देनेवाला मनोज सोनी सीधे फँस रहा है।
अब यह तथ्य उभरकर आ रहा है कि कथित आइ० ए० एस० प्रोबेशनरी पूजा खेडकर के बाप दिलीप खेडकर और माँ मनोरमा खेडकर ने अपनी बेटी को आइ० ए० एस०-अधिकारी बनवाने के लिए वर्ष २००९ मे पुणे के एक पारिवारिक न्यायालय मे आपसी सहमति से तलाक़ के लिए एक आवेदनपत्र दिया था, जिसे २५ जून, २०१० ई० को स्वीकार कर लिया गया था। उसके बाद भी कथित तलाकशुदा पति-पत्नी पुणे के बानेर क्षेत्र मे मनोरमा खेडकर के बंगले मे साथ-साथ रह रहे थे; उनकी विवाहित जोड़े के रूप मे सार्वजनिक आयोजनो मे भागीदारी देखी गयी थी, जिनके प्रमाण अब सार्वजनिक होने लगे हैँ। इसप्रकार दोनो ने फ़र्ज़ी तलाक़ ले लिया था और अवैध ढंग से विवाह-विच्छेद के नक़्ली प्रमाणपत्र जमा किये थे। पूजा ने अपने एक छद्म इण्टरव्यू के दौरान यह बताया था कि उसके परिवार की आय शून्य है; क्योँकि उसके माँ-बाप तलाक़शुदा हैँ और वह अपनी माँ के साथ रहती है, जबकि सच यह है कि उसका बाप एक सेवानिवृत्त अधिकारी है, जिसने हाल ही मे महाराष्ट्र-लोकसभा का चुनाव लड़ने से पहले नामांकनपत्र मे उल्लेख किया था कि उसकी कुल सम्पत्ति ४० करोड़ की है। नियमानुसार, जिन अभ्यर्थियोँ के माता-पिता की आय ८ लाख रुपये प्रतिवर्ष से कम है, वे ‘नॉन-क्रीमी लेयर की श्रेणी के अन्तर्गत आते हैँ। इतना ही नहीँ, यह भी ज्ञात हुआ है कि पूजा खेडकर की लगभग २० करोड़ की सम्पत्ति है, जिनसे प्रतिमाह लाखोँ रुपये किराये के रूप मे उसे मिलते हैँ।
इधर, केन्द्र-सरकार भी इस विवाद मे कूद पड़ी है; क्योँकि उसे मालूम है कि प्रधानमन्त्री-कार्यालय पर पड़ा पर्दा ग़र उठ गया तो विपक्षी दल रगड़ मारेँगे। यही कारण है कि केन्द्र-सरकार की ओर से पुणे-पुलिसतन्त्र को निर्देश किया गया है कि वह पूजा खेडकर के माता-पिता की वैवाहिक स्थिति के सच का पता लगाये।
आरोपित पूजा खेडकर पर भारतीय न्याय संहिता के अन्तर्गत धोखाधड़ी, चार सौ बीसी तथा अवैध प्रपत्रोँ के उपयोग मे लाने के लिए धारा ३१८ (४), धारा ३३६ (३), धारा ४२० तथा धारा ३४० (२) लागू किया जा सकता है; कुछ और धाराएँ बढ़ायी जा सकती हैँ।
संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष मनोज सोनी पर उनके त्यागपत्र देने पर दो प्रश्न खड़े होते हैँ :– पहला, उधर पूजा खेडकर पर जालसाज़ी के प्रकरण परत-दर-परत उघरते जा रहे थे, इधर मनोज सोनी ने अपना त्यागपत्र देकर सबको हैरान कर दिया, जबकि उनका कार्यकाल वर्ष २०२९ तक का था।
दूसरा, उनके त्यागपत्र देने का सबसे बड़ा कारण यह था कि विवादित आइ० ए० एस०-अभ्यर्थी का इण्टरव्यू मनोज सोनी ने ही लिया था। चेयरमैन-सहित पाँच सदस्यीय बोर्ड ने पूजा को २७५ मे से १८४ अंक दिये थे। उसका इण्टरव्यू २६ अप्रैल, २०२३ ई० को हुआ था। यहाँ यदि जाँच होती है तो मनोज सोनी निश्चित रूप से फँसते दिखेँगे।
'कार्मिक एवं प्रशिक्षण-विभाग' सीधे प्रधानमन्त्री-कार्यालय के अन्तर्गत आता है, इसलिए उसके निर्णय प्रधानमन्त्री-कार्यालय से होकर निकलते हैँ, जिसका मुख्य प्रधानमन्त्री होता है। यहाँ गम्भीर प्रश्न यह है कि जब पूजा खेडकर के अवैध.मेडिकल-प्रमाणपत्र को संघ लोक सेवा आयोग और 'कैट' की ओर से निरस्त कर दिया गया था तब प्रधानमन्त्री-कार्यालय से सम्बद्ध कार्मिक एवं प्रशिक्षण-विभाग की ओर से पूजा खेडकर को पुणे मे तैनाती का आदेश किस आधार पर और किसकी सहमति से जारी किया गया था, जबकि पूजा की प्रशिक्षण-अवधि भी पूरी नहीँ हुई थी?
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