चार दशक के बाद की सर्वाधिक भीषण रेल-दुर्घटना!

● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

हमारे देश मे प्रतिवर्ष कोई-न-कोई भीषण रेलदुर्घटना होती आ रही हैं; परन्तु दुर्घटनाओं से सम्बन्धित रेलविभाग के अधिकारी सीख ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। ४२ वर्षों-बाद यह भीषण दुर्घटना घटी है।

२ जून की संध्या ७ बजकर ८ मिनट पर ओडिशा के बालासोर जनपद के ‘बाहानागा’ रेलस्टेशन के समीप कोरोमण्डल एक्सप्रेस और मालगाड़ी के भीषण टक्कर से १५-२० बोगियाँ पलट गयी थीं। उसके बाद एक अन्य यात्री गाड़ी ‘यशवन्तपुर-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस’ गाड़ी से टकराने के बाद उसकी एक-के-बाद-एक बोगी पटरी से उतरती रहीं, जिसके नीचे बड़ी संख्या मे यात्री दबते रहे। अभी तक रेल-अधिकारी देश को मरे और घायल हुए यात्रियों की कोई विश्वसनीय सूचना नहीं दे पा रहे हैं। यही कारण है कि दुर्घटना के समय केवल ४ बोगियों के पलटने की सूचना दी गयी थी, जबकि उस समय लगभग २० बोगियाँ पलट चुकी थीं। आश्चर्य का विषय है कि हताहत की संख्या बतायी ही नहीं जा रही थी।

अब दुर्घटना का कारण बताया जा रहा है कि ‘लूपलाइन’ पर एक मालगाड़ी पहले से ही खड़ी थी और तकनीकी दोष के कारण सीधे जा रही गाड़ी उसी ‘लूप लाइन’ पर आ गयी थी। कोलकाता से १२८ कि० मी० प्रति घण्टा की गति मे अपलाइन पर हावड़ा की ओर दौड़ रही कोरोमण्डल एक्सप्रेस गाड़ी का इंजिन उस मालगाड़ी से टकरा गया, जिससे दोनो मे ऐसी भीषण दुर्घटना हुई थी कि बड़ी संख्या मे बोगियाँ मालगाड़ी के ऊपर उछलकर पलट गयी थीं; पटरी से उतर आयी थीं, वहीं एक अन्य ट्रैक पर चेन्नई की ओर डाउनलाइन पर जा रही ‘यशवन्तपुर-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस’ गाड़ी, जो लगभग सुरक्षित निकल चुकी थी; किन्तु अन्त के दो डिब्बे :– गॉर्ड और यात्रीवाले पटरी पर गिरे कोरोमण्डल के डिब्बों से टकरे गये थे। अब प्रश्न है, ‘कोरोमण्डल एक्सप्रेस’ ‘लूपलाइन’ पर कैसे आ गयी थी? यहाँ पर दोनो चालकों का कहीं कोई दोष नहीं दिख रहा है; दोष दिख रहा है तो ‘सिग्नल-संचालन’ का।

 लूपलाइन क्या होती है?

अधिक संख्या मे रेलगाड़ियों को समायोजित करने और रेलगाड़ी के संचालन को सुविधाजनक बनाने के लिए स्टेशन-क्षेत्र मे लूपलाइनो का निर्माण किया जाता है। लूपलाइनो का निर्माण लगभग ७५० मीटर की दूरी तक होता है, ताकि पूरी लम्बाई की मालगाड़ियों के इंजनो को समायोजित किया जा सके।

दुर्घटना के समय से रात्रि १० बजे तक दुर्घटनास्थल पर बचाव की कोई व्यवस्था नहीं दिख रही थी; क्योंकि वहाँ बहुत अन्धेरा है और बोगियों के नीचे दबे लोग जीवनरक्षा की याचना कर रहे थे। परिदृश्य अति भयावह रहा :– किसी का हाथ कट चुका है; किसी का पैर अलग हो चुका है; किसी की गरदन उड़ चुकी है; सिर यहाँ-धड़ वहाँ। बीभत्स दृश्य है!

बोगियों को काटकर यात्रियों को निकाला गया था। बड़े पैमाने पर बोगियों मे फँसे यात्रियों को बचाने के लिए जिस ‘गैस कटर’ की आवश्यकता थी उसे सही समय पर उपलब्ध नहीं कराया गया था। इसप्रकार सभी घायल यात्री ‘राम भरोसे’ दिख रहे थे।

दुर्घटना की विभीषिका को समझते हुए, मृतकों की संख्या ३०० से अधिक तक पहुँच सकती है; क्योंकि लगभग १,००० यात्री घायल हैं। आस-पास सभी प्रकार की सुविधाओंवाले अस्पताल न होने के कारण घायलों का उपचार करा पाना, बहुत सम्भव नहीं रहा। प्रथमदृष्ट्या व्यवस्थादोष मुख्य कारक है। दुर्घटना के घण्टों-बाद भी घायल यात्रियों का उपचार की कोई व्यवस्था नहीं थी। १० बजे रात्रि के लगभग यात्रियों की बचाव के लिए सम्बन्धित दल पहुँचा था।

इसकी जाँच रेलविभाग के अधिकारियों से न कराकर, ऐसी स्वतन्त्र एजेंसी से करायी जानी चाहिए, जिन्हें रेल की तकनीकी कारणो की विश्वसनीय जानकारी हो, अन्यथा हमेशा की तरह से इसमे भी लीपापोती की सम्भावना बनती दिखेगी।

बहरहाल, नैतिकता के आधार पर सम्बन्धित उच्चाधिकारियों को निलम्बित किया जाये और रेलमन्त्री का भी त्यागपत्र लिया जाये, ताकि पारदर्शिता के साथ जाँच की जा सके।

इसी संदर्भ मे एक बेहद नीचतापूर्ण दृश्य का साक्षी बनना, कितना नृशंसपूर्ण था, जिसे धिक्कारने के लिए शब्द नहीं मिल रहे।

नरेन्द्र मोदी अपने पूर्व-योजनानुसार जैसे ही बालासोर (ओडिशा)- दुर्घटनास्थल पर पहुँचे, अन्धभक्त “मोदी-मोदी” के नारे लगाने लगे और मोदी हाथ जोड़कर उनका ‘अभिवादन’ करने लगे।

भारतीय जनता पार्टी का झण्डा लिये, भगवाधारी नरेन्द्र मोदी के स्वागत मे पहुँचे थे, जबकि उस स्थल पर हज़ारों यात्री अपनी जान गवाँ चुके थे; बुरी तरह से घायल हो चुके थे। वहाँ का वातावरण शोकपूर्ण था, जबकि कुछ नीच मानसिकता के भगवाधारी “मोदी-मोदी” के नारे लगा रहे थे। नरेन्द्र मोदी उन मनबढ़ समर्थकों को डाँट सकते थे; वैसा करने से मना कर सकते थे; परन्तु ऐसा लग रहा था, मानो नरेन्द्र मोदी ‘रोड-शो’ कर रहे हों।

ऐसे मे, यह प्रश्न करना समीचीन है– क्या वह प्रायोजित कार्यक्रम था?

(सर्वाधिकार सुरक्षित― आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३ जून, २०२३ ईसवी।)