डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय-
देश के राष्ट्रपति ने 14 अगस्त सन्ध्या 7 बजे से प्रसारित ‘देशवासियों के नाम’ अपने प्रथम सम्बोधन में पूर्णत: ‘आदर्शवाद’ का पल्लवन किया। ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो ‘राष्ट्रपति महोदय’ के पास भूलवश देश के प्रधान मन्त्री नरेन्द्र मोदी का लिखित भाषण पहुँच गया हो और वे उसका वाचन कर रहे हों। नितान्त सन्तुलित भाषा-शैली में राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की प्रस्तुति रही। शब्द-शब्द में नरेन्द्र मोदी की अधिकतर योजनाओं की झलक मिल रही थी। यहाँ भी ऐसा लग रहा था, मानो भारतीय जनता पार्टी का कोई राष्ट्रीय प्रवक्ता बोल रहा हो। देश में व्याप्त मूल समस्याओं— स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति राष्ट्रपति महोदय के आलेख-वाचन में कहीं-कोई चिन्ता नहीं दृष्टिगत हुई। मैं तत्परतापूर्वक उनके आलेख-वाचन को सुनता रहा, परन्तु उनके कथन में कहीं-किसी मौलिक ‘राष्ट्रचिन्तन’ का विषय नहीं आया। ‘राष्ट्रनिर्माण’ के प्रति वे बहुत जागरूक दिख रहे थे, परन्तु प्रश्न है—- निर्माण तो वहाँ होता है जहाँ ध्वंस हुआ हो। तो क्या ऐसे में, हम मान लें, राष्ट्र ध्वस्त हो चुका है, उन्हें ‘राष्ट्रविकास’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए था।
राष्ट्रपति महोदय अनेक बार ‘न्यू इण्डिया’ निर्माण की बात भी करने लगे। ऐसे में, एक जागरूक देशवासी होने के कारण राष्ट्रपति महोदय से मेरा प्रश्न है : जब आप ‘न्यू इण्डिया’ का निर्माण करने-कराने के प्रति सन्नद्ध हैं तब ‘हमारे भारत’ का क्या होगा? हम सीधे-सादे देशवासियों को शब्दजाल में क्यों उलझा रहे हैं, राष्ट्रपति जी?
राष्ट्रपति महोदय ने ‘नयी पीढ़ी’ से बहुत आशा की है, परन्तु अपने भविष्य के प्रति सशंक नयी पीढ़ी का मार्गदर्शन करने की आवश्यकता उन्होंने नहीं समझी।
‘राष्ट्रनिर्माण’ और ‘न्यू इण्डिया-निर्माण’ की झोलियों में देश की सारी समस्याओं को डालकर राष्ट्रपति महोदय ने मुक्ति पा ली।
राष्ट्रपति महोदय मानवीय संवेदना, जम्मू-कश्मीर-समस्या, बोडा-आन्दोलन, महिला-उत्पीड़न, राष्ट्र और धर्म आदिक ज्वलन्त राष्ट्रीय विषयों के प्रति शब्दरहित रहे।
आश्चर्य तब और हुआ जब देश-देशान्तर की सीमाओं को उन्होंने अपने सम्बोधन में कहीं-कोई स्थान ही नहीं दिया, जबकि चीन और पाकिस्तान भारत के लिए संकट की स्थिति उत्पन्न करने में लगे हुए हैं।
अभिव्यक्ति-स्तर पर राष्ट्रपति महोदय का उच्चारण अशुद्ध रहा। उन्होंने ‘प्यारे देसवासियों’, ‘रास्ट्रनिर्माण’, ‘लछ्यों’, ‘बिकास’ ‘बिदेस’ ‘बिसयों’ ‘बिसवास’, ‘प्राकृतिक आपदा’ आदिक के प्रयोग किये थे। इस प्रकार वे श-स, श-ष, छ-क्ष, ब-व आदिक में अन्तर नहीं कर सके।
हाँ, राष्ट्रपति महोदय के सम्बोधन का जो सर्वाधिक श्लाघनीय पक्ष था, वह यह कि उन्होंने मात्र ‘हिन्दी-भाषा’ में अपना सम्बोधन करते हुए, एक कीर्त्तिमान् स्थापित किया है। इसके लिए राष्ट्रपति महोदय के प्रति मैं कृतज्ञ हूँ।