‘प्रधान मन्त्री का राष्ट्र के नाम सन्देश’ की समीक्षा

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
(प्रख्यात भाषाविद्-समीक्षक)

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय (मो०-9919023870/ईमेल पता- prithwinathpandey@gmail)-


शब्दसंधान करने में निपुण, देश के प्रधान मन्त्री नरेन्द्र दामोदर मोदी ने स्वतन्त्रता-दिवस के अवसर पर लाल क़िला के प्राचीर से अपनी चिर-परिचित आक्रामक शैली में ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ प्रस्तुत करते हुए, अपनी पीठ ‘अपने-आप’ ठोंकते रहे। लगभग अपनी सारी योजनाओं के सकारात्मक पक्ष पर केन्द्रित रहते हुए, जनमानस को मन्त्रमुग्ध करने का प्रयास करते दिखे थे। उनका सीना ठोंककर यह कहना कि इस वर्ष दाल का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है और सरकार ने किसानों से १६ लाख टन दाल ख़रीदी है, एक प्रश्न को जन्म देता है— फिर देशवासियों को बहुत महँगी दाल ख़रीद कर खाने के लिए बाध्य क्यों किया गया? एक और बात, प्रधान मन्त्री ने केवल ‘दाल’ शब्द का प्रयोग किया था; किस अन्न की दाल का वे प्रयोग कर रहे थे, स्पष्ट नहीं हुआ।
उल्लेखनीय है कि जिस समय प्रधान मन्त्री ‘राष्ट्र के नाम सन्देश’ प्रेषित कर रहे थे, उस समय ‘चण्डीगढ़’ में ‘स्वतन्त्रता-दिवस’ में सम्मिलित होने के लिए आयी १२-१४ वर्ष की एक छात्रा के साथ ३५-४० वर्ष का एक व्यक्ति ‘चिल्ड्रेन पार्क’ में बलात्कार कर रहा था। अपने भाषण में नरेन्द्र मोदी ने देश में अति तीव्र गति में निर्भय होकर प्रतिक्षण देश में किये जा रहे ‘महिला-बलात्कार’, ‘महिला-अपहरण’, ‘महिला-हत्या’, ‘महिला-उत्पीड़न’, ‘महिला-मानसिक-आर्थिक शोषण’ आदिक विषयों पर एक शब्द भी नहीं कहा। आज प्रत्येक स्तर पर एक ‘शिशु से लेकर वयोवृद्धा’ तक के साथ किये जा रहे अत्याचार, अनाचार तथा कदाचार-विषयों को अपने आलेख में स्थान देना प्रधान मन्त्री ने उचित नहीं समझा था। वहीं वे वीरतापूर्वक अपनी सारी योजनाओं के ‘शुक्ल पक्ष’ को गिनाते थक नहीं रहे थे; यह अलग बात है कि छोटे बच्चे घण्टों बैठे-बैठे ऊब और धूप को महसूस कर रहे थे; बड़े-बुज़ुर्गों का भी वही हाल था। बेचारे बच्चे-बड़े-बूढ़े अपने सिर की टोपियों अथवा रुमाल अथवा दुपट्टा अपने चेहरों पर हिलाहिलाकर वायुदेव का आह्वान करते दिख रहे थे। इसप्रकार महिला-विषयक बिन्दुओं पर प्रधान मन्त्री नि:शब्द रहे। ‘नोटबन्दी’ प्रकरण से उत्पन्न जनधनखाता, सरकार और बैंकों की आर्थिक उपलब्धियाँ, काले धन का बैंकों में जमा होना आदिक को प्रधान मन्त्री गिनाते रहे और देशवासियों को आँकड़ों में उलझाते रहे, परन्तु वे यह नहीं बता सके कि अपनी घोषणा के अनुसार, सबके खातों में ‘१५ लाख रुपये’ अब तक क्यों नहीं जमा करवा सके। जमा होता भी कैसे? नीति और नीयत में शुचिता होती तब न? वहीं विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन लाने की अपनी घोषणा पर प्रकाश डालना, प्रधान मन्त्री ने उपयुक्त नहीं समझा।
प्रधान मन्त्री ने जब देश के युवा-वर्ग को लक्ष्य करते हुए कहा था, “करोड़ों नौजवानों को हमने अपने पैरों पर खड़ा किया है। देश का भाग्य-निर्माण करने का आपको अवसर मिल रहा है” तब मेरे मुखमण्डल पर सुखद आश्चर्य-मिश्रित रेखाएँ बनने-मिटने लगीं। पहली बात, मेरा मानना है, जो अपने जीवन-कर्म के साथ छल करते हैं, वे ही ‘भाग्य’ के प्रति आस्थावान् हैं; दूसरी बात, आज देश के जिन करोड़ों युवाओं को शासकीय व्यवस्थाजन्य विद्रूपताओं का शिकार होकर दिग्भ्रमित होना पड़ा है, उनसे इतनी अधिक अपेक्षा प्रधान मन्त्री करने लगे हैं। पहले नरेन्द्र मोदी अपने उस आश्वासन को पूरा करें, जिससे सम्मोहित होकर देश के युवाओं ने उन्हें प्रधान मन्त्री बनवाया है। वह आश्वासन है– मेरी सरकार आयेगी तो मैं प्रतिवर्ष दो करोड़ युवाओं को रोज़गार दूँगा। इस तरह देखते-देखते, सरकार के तीन वर्ष समाप्त हो गये और देश की बेरोज़गारी ‘युवावस्था से प्रौढ़ावस्था’ की डगर की ओर फिसल चुकी है।
प्रधान मन्त्री की इस सूचना से मन प्रफुल्ल हुआ और मेरी भारतीयता गौरवान्वित हुई, “किसान अनाज का रिकॉर्ड उत्पादन कर रहा है।”
ऐसे में, कई प्रश्न आकर मेरे मन-मानस पर चढ़ाई करते हुए, मेरे गालों पर लगातार चाँटे मारने लगे तब मेरी तन्द्रा भंग हुई। अब वे सारे प्रश्न प्रधान मन्त्री से— जब किसानों ने रिकॉर्ड उत्पादन किये हैं तब उन्हें उनका लाभ क्यों नहीं मिल रहा है? आज देशभर में किसान आन्दोलित क्यों है?किसान आत्महत्या क्यों कर रहा है? किसान अपनी सन्तानों को कृषि-कार्यों से दूर कर, शहरों में क्यों भेज रहा है? किसान अपनी खेती का अधिकतर भाग ‘बटाइया’ पर क्यों दे रहा है? किसान अपने खेत ‘लगान’ पर देने के लिए बाध्य क्यों है? किसान अपनी खेतिहर ज़मीन बेचकर वयवसाय क्यों कर रहा है? सरकारें किसानों की खेतिहर ज़मीन चौगुने दाम पर ख़रीद कर सड़कों को चौड़ी क्यों कर रही हैं?
प्रधान मन्त्री ने अपने ऐतिहासिक ‘वक्षप्रान्त’ पर गर्व करते हुए कहा— महँगाई पर हमने नियन्त्रण पा लिया है। हमने सस्ता घर बनवाने का रास्ता साफ़ कर दिया है।
उनके ये कथन असत्य हैं। महँगाई ‘नयी जवानी’ की तरह से पेंगे बढ़ा रही है। प्रधान मन्त्री बताना चाहेंगे कि महँगाई नियन्त्रित कैसे है। अन्न, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास-निवास— जीवन जीने के लिए इनकी ही आवश्यकता रहती है। महँगाई-नियन्त्रण करने के नाम पर
इनमें से किस पर सरकार ने नियन्त्रण किया है? हाँ, सरकार का ख़ज़ाना अवश्य भरता जा रहा है। रही बात घर को सस्ता करने की तो प्रधानमन्त्री बताना चाहेंगे— पिछले तीन सालों की तुलना में ईंट, बालू, सीमेंट, लोहा, कांक्रीट, विद्युत सामग्री, जल-प्रसाधन, मज़दूरी आदिक सस्ती हुई है अथवा महँगी?
प्रधान मन्त्री देशवासियों को बेवकूफ़ बनाने की कलाबाज़ी दिखाने के बजाय अपने लोग को ही दिखाएँ तो उन्हें शोभा देगी।
प्रधान मन्त्री का यह कथन उनके और उनके सरकार के सारे अंगों पर निर्मम प्रहार करता है, “जातिवाद की ज़हर, सम्प्रदायवाद का ज़हर देश का भला नहीं कर सकता है।”
प्रधान मन्त्री के इस ‘आर्ष’ वचन का सारे देशवासी सम्मान करना चाहेंगे और इसे ‘यथार्थ’ में देखना भी चाहेंगे। खेद है, ऐसी बात वह प्रधान मन्त्री बोल गया, जिसके शासन-काल और नेतृत्व में सम्पूर्ण देश में जातिवाद और सम्प्रदायवाद का ज़हर आँखें खोलकर बोया जा रहा है। यदि नहीं तो सरकार ‘बिना अतीत का सहारा लिये’ देशवासियों को उत्तर दे :————–
‘दलित’, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, जनजाति, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक पिछड़ा वर्ग आदिक वर्गीकरण क्यों और किसके लिये किये गये हैं?
प्रधान मन्त्री का यह सूचना देना कि उनकी सरकार ने ‘पौने दो लाख कम्पनियों’ के ताले लगा दिये हैं, अजीब-सा लगता है। उन्होंने यह नहीं बताया कि वे कम्पनियाँ किससे सम्बन्धित थीं और उनकी तालाबन्दी क्यों की गयी।
प्रधान मन्त्री के शब्दों में, “भाइयों-बहनों! हमने अनगिनत निर्णय तीन सालों में किये हैं।”
ऐसे में, एक आक्रोशपूर्ण प्रश्न जवान हो जाता है— प्रधान मन्त्री जी! आपने अपने शासनकाल में ‘अनगिनत’ निर्णय कर लिये और देश के लोकतन्त्रीय प्रतिपक्षी दलों और मेरे-जैसे जागरूक समीक्षकों को ‘हवा’ तक नहीं लगी? शायद आप ‘अनगिनत’ के अर्थ से अनभिज्ञ हों।
प्रधान मन्त्री ने गोरखपुर बालमृत्यु-प्रकरण, आतंकवाद, आस्था के नाम पर अपराध, तीन तलाक़ आदिक विषयों के प्रति अपनी सकारात्मक प्रतिबद्धता दोहरायी, इसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं। अपने सम्बोधन में देश में आवृष्टि (जलबाढ़) के प्रभाव से आज जिस तरह से लाखों लोग कुप्रभावित हैं और अब तक हज़ारों की संख्या में मनुष्यों और पशुओं की जीवनलीला समाप्त हो चुकी है तथा लाखों लोग विस्थापित हो चुके है; उनकी सम्पदा जल लील चुका है, इन बिन्दुओं के किसी भी भाग को प्रधान मन्त्री ने स्पर्श तक करना उपयुक्त नहीं समझा, क्यो?
‘तीन तलाक़’ पर प्रधान मन्त्री का यह वक्तव्य द्रष्टव्य है—- तलाक से पीड़ित महिलाओं का ‘हिन्दुस्तान’ मदद करेगा।
ऐसा प्रतीत हुआ, मानो प्रधान मन्त्री अतिरिक्त जोश में आकर ‘होश’ खो बैठे हों। वे भूल चुके थे कि जिन महिलाओं की मदद करने की बात वे कर रहे थे, वे ‘हिन्दुस्तान’ की ही हैं। उन्हें कहना चाहिए था— पीड़ित महिलाओं की मदद ‘देश’ करेगा; आपकी सरकार करेगी।
इससे एक और तथ्य उभर कर आता है कि भूलवश अथवा जानबूझकर देश के प्रधान मन्त्री ‘भारतीय जनता पार्टी’ का चश्मा पहन कर आ गये थे, जिससे तीन तलाक़’ से पीड़ित महिलाओं को देख रहे थे।
अपने सम्बोधन में औपचारिकता पूरी करते हुए प्रधान मन्त्री ने जम्मू-कश्मीर की समस्या लेकर ‘आदर्शवाद’ बघारते हुए, आतंकवादियों को ‘राष्ट्रीय धारा’ में आने का आह्वान किया। अपने विपक्षी जीवन में जिस ‘धारा ३७०’ को लेकर उनके लोग ने ‘जीवन-मरण’ का प्रश्न बनाकर लगातार संसद् को बाधित करते हुए, देश के अरबों रुपये बरबाद कर डाले थे, वही सत्ता में आकर प्रधान मन्त्री के रूप में राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए ‘एक शब्द’ नहीं बोल पाये।
लगता है, प्रधान मन्त्री को ‘भारत’, ‘हिन्दुस्तान’ तथा ‘इण्डिया’ ने परेशान करके रख दिया है, तभी तो वे अब ‘न्यू इण्डिया’ की शरण में आना चाहते हैं। ‘न्यू इण्डिया’ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए, जब प्रधान मन्त्री ने बताया,”भारत में पहले ‘तन्त्र’ से ‘लोक’ चलता था और ‘न्यू इण्डिया’ में ‘लोक’ से ‘तन्त्र’ चलेगा।” इसका मतलब यह हुआ, ‘शराब वही, बदलेगी तो ‘बोतल’। फिर ‘लोकतन्त्र’ को उससे फ़र्क़ ही क्या पड़ता है— चाक़ू फल पर गिरे अथवा फल चाक़ू पर गिरे, कटेगा तो फल (देशवासी) ही।
अब प्रधान मन्त्री का भाषिक मूल्यांकन करते हैं :———
अशुद्ध प्रयोग :

  • ‘बड़ी मात्रा’ में हमारे नौजवान वापस आये।
  • प्राकृतिक आपदाएँ
  • नयी व्यवस्थाएँ जन्म लेती हैं।
  •  देश में अनेक राज्य हैं।
  •  मैं सामने देख रहा हूँ कि बड़ी मात्रा में यहाँ बाल कन्हैया बैठे हैं।

निष्पत्ति यह है कि सत्ता के शीर्षस्थ व्यक्ति होने का अर्थ यह नहीं है कि वैसा व्यक्ति सामनेवाले को ‘जड़बुद्धि’ समझ ले, फिर जब देश का प्रधान मन्त्री राष्ट्र को सम्बोधित कर रहा होता है तब वह ‘राष्ट्र का प्रतिनिधित्व’ भी कर रहा होता है, ऐसे में, शब्दार्थ-गाम्भीर्य को समझते हुए, अभिव्यक्ति की जाती है।