न्यूइण्डिया की मोदी-सरकार के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का ‘राष्ट्र के नाम सन्देश’ की समीक्षा

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

प्रकारान्तर से नरेन्द्र मोदी ने अपने 'लॉक-डाउन' को 'अनलॉक' करने को ग़लत ठहराया है, तभी तो 'अनलॉक- एक' के परिणाम पर उन्होंने गहरी चिन्ता व्यक्त की है। दिखावे के लिए गमछे से उनका एक बार चेहरा ढकना, फिर गमछा हटाना, स्वाभाविक आचरण नहीं लगा। 

नरेन्द्र मोदी के उद्बोधन में एक बार भी मध्यम वर्ग शब्द का कहीं कोई स्थान नहीं रहा; मुक्त और बद्ध 'करदाता' के अलावा बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो रोज़ कुआँ खोदते हैं और पानी पीते हैं, फिर भी वे 'ग़रीब' नहीं हैं, क्यों? 

भारत-चीन-सीमा-विवाद पर मोदी मौन रहे। मीडिया के गलियारों से भारत-द्वारा 'कोरोनारोधक' दवा बनाने की सूचना को ज़ोर-शोर से प्रचार-प्रसार करने की पुष्टि करना, नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकता में था ही नहीं। 

नरेन्द्र मोदी-द्वारा 'प्रधानमन्त्री अन्न कल्याण योजना' के अन्तर्गत २० लाख हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च करके ८० करोड़ ग़रीब परिवार के प्रत्येक सदस्य को पाँच महीने तक प्रतिमाह पाँच किलोग्राम गेहूँ अथवा चावल मुफ़्त अनाज देने की घोषणा स्वागत-योग्य है। काँग्रेस सितम्बर तक मुफ़्त अनाज देने के लिए सरकार से आग्रह कर रही थी, जबकि सरकार ने उसे और दो माह तक बढ़ाकर इस विषय में काँग्रेस को निरुत्तर कर दिया है। यहाँ पर प्रश्न है, नरेन्द्र मोदी ने मध्यम वर्ग के उन १० करोड़ लोग को क्यों छोड़ दिया है, जो अपने मिथ्याभिमान के कारण सरकार से अपने लिए अन्न और धनराशि की माँग नहीं कर पाते हैं? 

आज़ादी के बाद से देश की जितनी भी सरकारें आती रही हैं, सभी 'ग़रीब और ग़रीबी' के नाम पर मध्यम वर्ग का प्रत्यक्षत:-परोक्षत: शोषण-दोहन-उत्पीड़न करती आ रही है। प्रश्न है, वास्तव में, अभी तक ग़रीबी मिटी क्यों नहीं? नरेन्द्र मोदी के लिए 'टैक्सपेयर' के नाम पर मध्यम वर्ग की पीठ ठोंक देना ही पर्याप्त नहीं है। 

राजनीति कितनी दोगली होती है, समझें। एक ओर, नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि 'टैक्सपेयर' लोग के सहयोग से हम ग़रीबों के लिए यह अन्नदान योजना क्रियान्वित करने, किसानों-ग़रीबों, जनधनखातों में मुफ़्त के रुपये भेजने में समर्थ हुए हैं; दूजी ओर, पेट्रोलियम मन्त्री धर्मेन्द्र प्रधान से जब पेट्रोल-डीज़ल के मूल्यों में लगातार बढ़ोतरी किये जाने के औचित्य पर जब प्रश्न किया गया था तब उनका कहना था कि पेट्रोल-डीज़ल से प्राप्त आय से सरकार की ओर से ग़रीबों को मुफ़्त खाद्यान्न उपलब्ध कराने, आर्थिक सहायता करने, किसानों को धनराशि आदिक उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जायेगी। ऐसे में प्रश्न है, सरकार देश की जनता की पीठ पर दोहरा चाबुक लगाते हुए, उसे लहूलुहान क्यों कर रही है? 

नरेन्द्र मोदी को यह भी बताना चाहिए था कि जनधन खाता बन्द किया जा चुका है; किसानों को दी जानेवाली सम्मानसूचक धनराशि बन्द कर दी गयी है।               

जनधनखातों में ३१ हज़ार करोड़ रुपये जमा कराये गये हैं, ऐसा मोदी ने बताया है; समय इस पर किस तरह से मुहर लगाता है, देखना बाक़ी है। किसानों के खाते में १८ हज़ार करोड़ रुपये सम्मानराशि के रूप में डाले गये हैं। क्या सभी के खाते में ये रुपये पहुँच चुके हैं, इसकी पुष्टि कौन करेगा? 

भारत में देश का प्रधानमन्त्री हो या ग्रामप्रधान हो, किसी नियम से बढ़कर नहीं है, इस आशय की मोदी की बात ही उन्हें कठघरे में ला खड़ा करती है। मोदी ने समय-समय पर अपने चुनावी भाषणों में स्वयं को 'नीची जाति' 'ग़रीब', 'पिछड़ी जाति', 'चौकीदार' और न जाने क्या-क्या कहा है; परन्तु पिछले छ: सालों से सरकारी नौकरी-पेशा करनेवाले उनकी निरंकुश प्रवृत्ति और 'राष्ट्रद्रोही' घोषित करने की कला से थरथराते आ रहे हैं। 

मोदी ने किसी देश के एक प्रधानमन्त्री का उदाहरण देते हुए बताया था कि उसके चेहरे पर 'मास्क' न लगाने के कारण उस पर १३ हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया गया था; परन्तु उन्होंने यह नहीं बताये कि उनके और विरोधी दल के सांसद, विधायक, मन्त्री आदिक "डंके की चोट पर" जिस नृशंसता के साथ नियम-क़ानून की खिल्लियाँ उड़ाते आ रहे हैं, उनके विरुद्ध कौन-सी काररवाई की जा रही है? 

नवम्बर-माह में बिहार-चुनाव होनेवाला है, इसीलिए मोदी ने अपने सम्बोधन में दीवाली से लेकर छठपूजा तक के हिन्दुओं के सभी त्योहारों-राष्ट्रीय पर्वों को गिना डाला; परन्तु उस बीच में पड़नेवाले अन्य सम्प्रदायों के पर्व-त्योहारों की गणना का औचित्य नहीं समझा, जबकि प्रधानमन्त्री सभी का है और भारत का संविधान 'सर्वधर्म समभाव' पर आधारित है। 

उन्होंने कहा कि वे ग़रीब, पीड़ित, शोषित, वंचित के लिए काम करेंगे। प्रश्न है, उक्त चारों की विभाजन-प्रक्रियाएँ क्या हैं? 

'एक राष्ट्र-एक राशन कार्ड' की योजना सराहनीय है; परन्तु उसके अन्तर्गत क्या-क्या व्यवस्था रहेगी, यहाँ भी मोदी मौन दिखे हैं। देश में बड़ी संख्या में जनता है, जो अभी तक राशनकार्ड बनवा पाने में सफल नहीं हो पा रही है; बड़ी संख्या में ऐसे स्थान हैं, जहाँ आपराधिक प्रवृत्ति के लोग राशन कोटेदार बने हुए हैं। अफ़्सोस, नरेन्द्र मोदी इन्हें भी नज़रअन्दाज़ करते रहे। 

कोरोना-काल में लाखों लोग की नौकरियाँ छीन ली गयी हैं; लाखों लघु उद्योग-प्रतिष्ठान बन्द कर दिये गये हैं; बन्द हो रहे हैं; कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर दी गयी है; सरकारी-ग़ैर-सरकारी अध्यापकों, अन्य कर्मचारियों आदिक को कई महीनों से वेतन नहीं मिला है; सरकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के खेलों ने मध्यम वर्ग को तोड़ कर रख दिया है और उसकी थाली छीनकर कथित ग़रीबों के सामने परोस दिया गया है, इन विषयों पर नरेन्द्र मोदी मौन रहे। 

सच तो यह है कि आज़ादी से अब तक की सभी सरकारें 'ग़रीब' को ढाल बनाकर 'मध्यम वर्ग' पर मनमानी के शस्त्रास्त्र चलाती आ रही हैं और मध्यम वर्ग को 'हिन्दू-मुसलमान', 'गाय-गोबर', 'मन्दिर-मस्जिद', 'अवर्ण-सवर्ण', 'आरक्षण', 'जाति-वर्ग' आदिक में बाँटकर उसकी शक्ति को विकेन्द्रित कर दिया गया है। 

(सर्वाधिकार सुरक्षित-- आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ३० जून, २०२० ईसवी)