विद्यार्थी और अध्यापक शुद्ध शब्द बोलने-लिखने के प्रति सजग रहें– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

२३ सितम्बर को धर्मादेवी इण्टरमीडिएट कॉलेज, केन (कौशाम्बी) के सभागार मे आयोजित ‘आचार्य पण्डित पृथ्वीनाथ पाण्डेय की पाठशाला’ मे सैकड़ों विद्यार्थियों और अध्यापकों को मौखिक, लिखित तथा सांकेतिक भाषा का सोदाहरण बोध कराया गया। लगातार साढ़े तीन घण्टे तक चलनेवाली कर्मशाला मे विद्यार्थी अन्त तक धैर्यपूर्वक बैठे रहे और बताये, समझाये तथा लिखाये गये शब्दप्रयोग को लिखते रहे।

आरम्भ मे कर्मशाला के मुख्य अतिथि और मार्गदर्शक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने दीप-प्रज्वलन कर आयोजन का उद्घाटन किया; तदनन्तर अल्पा मिश्र, आँचल, ख़ुशबू देवी रिया जैश, शिखा पाल तथा शीलू ने सामूहिक नृत्य के माध्यम से सरस्वती की आराधना की। तनूजा गौतम, सविता, आँचल तथा ईशिता केसरवानी ने सामूहिक नृत्य के द्वारा स्वागतगान भी प्रस्तुत किया। विद्यालय-प्रधानाचार्य डॉ० रामकिरण त्रिपाठी ने स्वागत किया।

संयोजक शिक्षक एवं लेखक रणविजय निषाद ने मुख्य अतिथि का परिचय प्रस्तुत किया।

इसी अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ० रामकिरण त्रिपाठी ने मुख्य अतिथि आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय और संयोजक रणविजय निषाद को अंगवस्त्र और प्रतीकचिह्न भेंटकर सम्मानिक किया गया। इन औपचारिकताओं के पश्चात् मार्गदर्शक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने लगातार साढ़े तीन घण्टे तक विद्यार्थियों और अध्यापक-अध्यापिकाओं को बताया, समझाया तथा लिखाया कि कैसे पहचानेगे कि कौन-सा शब्द अशुद्ध है और कौन-सा शुद्ध। इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी बताया कि एक ही जैसे अर्थ प्रकट करनेवाले शब्द अनेक हैं; परन्तु उनका प्रयोग अर्थ के भाव के अनुसार करना चाहिए। उन्होंने आरोपी-आरोपित, मिष्ठान-मिष्ठान्न, लिए-लिये, रंग-बिरंगा-रंग-विरंगा, ‘ध-घ’, ‘भ-म’, ‘बहुत-बड़ा’, परीक्षा-परिक्षा, आमन्त्रण-निमन्त्रण, शाप-अभिशाप, आग्रह-अनुग्रह, ‘बिल्कुल-बिलकुल’, ‘फूल-कली’, ‘सृजन-सर्जन’ ‘उज्जवल-उज्ज्वल’ ‘प्रज्वलन-प्रज्जवलन’, ‘चिन्ह-चिह्न, ब्रम्ह-ब्रह्म आदिक मे कौन-कौन से शुद्ध हैं और क्यों? इनमे अन्तर और अर्थ सुस्पष्ट करते हुए, लिखकर समझाया। उन्होंने एक ही अर्थवाले कई शब्दों मे तात्त्विक अन्तर को सुस्पष्ट करते हुए प्रयोग-भेद को समझाया; जैसे– ही, सिर्फ़, मात्र, केवल, राम, राघव, आमन्त्रण-निमन्त्रण, कॉपी चेक़ करना-कॉपी इग्ज़ामिन करना-उत्तरपुस्तिका का परीक्षण करना, अवस्था-आयु-उम्र आदि-आदिक, इत्यादि-इत्यादिक। इस पाठशाला की विशेषता रही कि छात्र-छात्राएँ पूर्ण तल्लीनता के साथ अन्त तक सीखने की भूमिका मे दिख रही थीं। इस सारस्वत आयोजन मे विद्यालय के प्रबन्धक ९६ वर्षीय राम अवतार त्रिपाठी, अर्पिता, कल्पना, ममता, प्रीति, आदित्य द्विवेदी, वरुणप्रकाश ज्योति, शंकरलाला, शैलेन्द्र कुमार गुप्त, राजेश कुमार आदिक अध्यापिका-अध्यापकों की समुपस्थिति रही।

कर्मशाला का समापन राष्ट्रगान से किया।
आयोजन का संचालन रामशंकर सिंह ने किया। प्रधानाचार्य ने कृतज्ञता-ज्ञापन किया।