सदाचरण व सद्व्यवहार ही सत्धर्म

सदाचरण व सद्व्यवहार ही सत्धर्म है।
यह सत्धर्म ही परस्पर शत्रुता के स्थान पर मित्रता को प्रतिष्ठित करता है।
दुर्जन नहीं सज्जन बनने के लिए इसी शाश्वत एवं सनातन धर्म को स्वीकार किया जाता है ऐसे सनातन सत्धर्म को नमस्कार है-

मैत्री संस्थापको यश्च विश्वशांति विधायकः।
सनातनाय धर्माय तस्मै नित्यं नमो नमः।

अब विचार कीजिए क्या मौजूदा हिंदुत्व को फॉलो करने वाले लोग सतधर्मी अर्थात सज्जनता को फॉलो करते हैं ?
यदि नहीं तो फिर वे सनातनधर्मी कैसे हुए?

मौजूदा हिन्दू यदि वास्तव में सनातनधर्मी हैं तो उन्हें दुर्जनता/दुष्टता को त्यागकर सज्जनता को पूर्णतः स्वीकार करना होगा अन्यथा वे सनातनधर्मी होने का प्रपंच करना छोड़ दें!

दो नाव में पैर रखकर चलने से स्वयं का विनाश होना सुनिश्चित है इसलिए मौजूदा हिंदुत्ववादियों को असत्य, घृणा, अन्याय व पाप के मार्ग को त्यागकर पुनः सदाचार व सद्व्यवहार को स्वीकारकर सनातनधर्म में वापसी करना ही उचित होगा…

हे मौजूदा हिंदुत्व के ठेकेदारों!
कान खोलकर सुन लो, जबतक आप असत्य, घृणा, अन्याय व पाप के रास्ते चलते हुए भारतभूमि को हिन्दूराष्ट्र बनाने की कुत्सित मानसिकता पर काम करते रहोगे तबतक मुँह की खाओगे…कोई तुम्हारे साथ नहीं खड़ा होगा…

इसलिए अभी भी वक़्त है सुधर जाओ और दुष्टता/दुर्जनता को त्यागकर सनातनधर्म के मूल मित्रभाव को स्वीकार करो!

E = mc2
यही वास्तविक सनातनधर्म का मैथमटिकल फार्मूला है जिसे थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का सिद्धांत भी कहा जाता है…

Who is but one.
The self all in all.
None else exists.
And thou are that HINDU-MUSLIM Bold!
Say Om Tat Sat Om…
(जो केवल एक है, स्व ही सर्व है, आत्मा ही सबकुछ है, उसके सिवा अन्य कुछ है ही नहीं, और वहीँ तुम हो!
हे वीर हिन्दुओं-मुसलमानों कहो – “ॐ तत्सत ॐ”)

क्या अब भी अंतर्संबद्धता के सिद्धांत पर कोई शक़ बचा है?
यदि हाँ तो आप मनुष्य नहीं एक जाहिल जंगली जानवर से ज्यादा कुछ नहीं…कुछ भी नहीं…

!! शुभकामना !!
✍️?? (राम गुप्ता – स्वतन्त्र पत्रकार – नोएडा)