संस्कृतभाषा किसी की ‘बपौती’ नहीं है

०त्वरित टिप्पणी०

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

आश्चर्य है कि जिस व्यक्ति के पिता संस्कृत के श्लोकादिक का गायन कर अपने और परिवार की आजीविका का निर्वहण करते हैं, जिसके भाई संस्कृत-अनुरागी हैं, उनका तथाकथित आर्य की सन्तति विरोध नहीं करते; किन्तु सभी आर्य-सन्तति को चुनौती देते हुए बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृत के प्राध्यापक के रूप में जो अभ्यर्थी शीर्ष पर स्थापित हो चुका है, वह एक मुसलमान-सम्प्रदाय का व्यक्ति है। उस शख़्सीयत का नाम है, ‘फ़िरोज़ ख़ान’। सर्वाधिक उल्लेखनीय विषय है कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में संस्कृतविषय के लिए चयनसमिति ने जिस अभ्यर्थी की मुखरता, वाक्पटुता तथा वाग्मिता से प्रभावित होकर एक मत से उसका चयन किया है, वह है, फ़िरोज़ ख़ान।

खेद है कि प्रोफ़ेसर फ़िरोज़ ख़ान के संस्कृत-विभाग में अध्यापन करने को लेकर विद्यार्थियों का एक गुट स्वयं को आर्य की सन्तान बता रहा है और प्रो० फ़िरोज़ को अनार्यों की सन्तान। ऐसे अकर्मण्य आर्य की सन्तति को चुल्लूभर पानी में डूब मरना चाहिए कि उसी अनार्य की सन्तान ने अपनी विद्वत्ता के बल पर तथाकथित आर्यों की समस्त अभ्यर्थियों को अपनी प्रतिभा के सम्मुख टिकने नहीं दिया।

धरना-प्रदर्शन कर रहे कथित आर्यों की सन्तति को जान लेना चाहिए कि मैक्समूलर, दाराशिकोह आदिक ऐसे व्यक्तित्व रहे, जिनके संस्कृत-ज्ञान के सम्मुख आर्य-सन्तति ठगी-की-ठगी रह गयी थीं; परन्तु उनका किसी ने विरोध नहीं किया था। समकालीन विद्वज्जन मैक्समूलर को ‘मोक्षमूलक’ कहा करते थे।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय-प्रशासन साधुवाद का पात्र है, जो संकीर्ण आर्यधर्मियों के विरोध में प्रो० फ़िरोज़ की मेधा-प्रतिभा के साथ खड़ा है। यदि कथित हिन्दूवादी आर्य-सन्तति वितण्डावाद का प्रदर्शन कर बलप्रदर्शन करते हैं तो विश्वविद्यालय-प्रशासन को चाहिए कि कुतर्क के आधार पर प्रदर्शन कर रहे अराजक तत्त्वों को विश्वविद्यालय से निकाल बाहर करे। हमें नहीं भूलना चाहिए कि तथाकथित आर्यों की सन्तति संस्कृतभाषा को ‘मृतभाषा’ कहती आ रही है और अनार्य की सन्तान उसे शिरोधार्य मान रही है। ऐसे में आर्य (श्रेष्ठ) कौन है और ‘अनार्य’ (अश्रेष्ठ) कौन है, हमारे पाठकवृन्द विचार करें और यहाँ बतायें।

(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १९ नवम्बर, २०१९ ईसवी)