श्वेता! धवला! वाग्देवी! शब्द-दान दीजिए।
आपका हूँ दास मातु, ज्ञान-मान दीजिए।
आपका वरदहस्त, मूल्य से भी मूल्यवान।
शब्दों मे मेरे राम हों, वरदान मातु दीजिए।
श्वेता! धवला! वाग्देवी! शब्द-दान दीजिए।
आपका है दास राघव, ज्ञान-मान दीजिए॥
आपसे ही शब्द-शक्ति, आप मन्त्र-रूप हैं।
बन्ध आप छन्द आप, आप शिव-स्वरूप हैं।
आप जड़ की चेतना, आप ही तो राग हैं।
माँ आप से ही यज्ञ जप, आपसे वैराग्य है।
जयदेवी सुत की, मति निर्मल कर दीजिए।
आपका है दास राघव, ज्ञान-मान दीजिए॥
वेद आप मन्त्र आप, शास्त्र श्लोक आप हैं।
आपकी धवलता से, सबके मिटते पाप हैं।
गति भी आप मति भी आप, आप धर्ममूल हैं।
आप के सान्निध्य से, हटते पथ के शूल हैं।
हे वर्णेश्वरी! वर्णो की माला, दान मे दे दीजिए।
आपका है दास राघव, ज्ञान-मान दीजिए॥
—राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव‘