—आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
चाचा झगड़ू– अरे बेटवा रगड़ू!
भतीजा रगड़ू– चाचा! कई दफा बोला है, बेटा मत कहा करो। अरे! कछु लाज-सरम किहा करो। हम तुम्हार भतीजा हैं, भतीजा। भतीजा अउर बेटा मा बहुतै फरक होत हय। दिमाग के ताला खोलौ तो पकड़ि मा आय जाय।
चाचा– बेटा रगड़ू!… ओह! फिर माथा फिरि गवा। भतीजा रगड़ू! अब तुम हिंहा से जाव बच्चा। तुमका पुकार के हम बाड़ा भारी गलती कइ दिहा। जाव बच्चा, जाव।
भतीजा– चाचा! भला इ कइसे होइ सकत हय कि तुम बुलाव और हम नय आयँ। ना-ना चाचा। भेरी-भेरी इमपोसिबल। अब बताव का बात हय? इ नाचीज के काहें गोहरायो।
चाचा– बेटा रगड़ू! का बतायँ, फिर ‘बेटा’ जबान में घुस गा।
भतीजा– चाचा! हमार बाबू के कहनाम रहा– बेटा रगड़ुआ! कुकुर के पोंछ मा सवा टन सुद्ध घी लगाइ दो, तबहूँ ओकर पोंछ टेढ़ा-के-टेढ़ा रहत हय। आच्छा अब इ सब छोड़ो, मेन पोआइंट पर आओ।
चाचा– भतीजे! राजनीति जस धन्धा खूब फूलै-फलै। एक बार उहौ का मजा लिहा जाये। अरे भतीजे! चार दिन की चाँदनी, फिर अँधेरो रात।
भतीजा– चाचा बात मार्के के कहौ। चोरी से छिनारा तक सब करि डारौ, सब तुम्हार माफ। कवनो पाल्टी मा जुगाड़ लगाइ कै घुस जाव। सूरत से हट्टा-कट्टा तो हइए हौ। पहिले कवनो बिधायक के आगू-पीछू डोलो। ओका टम्पू हाई करौ। ऊ रात के दिन कहै तो ‘दिन’ कहौ और दिन क रात बोलै त ‘रातै’ बोलौ। एह तरह ओकर जोरदार चमचा बन जाव। कवनो त्योहार क इंतजार करौ और सही समय देख, ओकै घरे मा एक बोरा चाउर, एक बोरा गहूँ, एक बोरा दाल अउर एक कनस्तर देसी घी पहुँचा देवो, फिर देखौ असर।
चाचा– बाह भतीजे बाह! तुम हमार किस्मत के ताला खोल दिहौ।
भतीजा– अभी का चाचा; देखै जाव, इ तौ हमार फिलम का ट्रेलर है; अभी तौ फिलम का कुल रील बाकी हय।
वैसे चाचा! एक बात बतायँ?
चाचा– हाँ बोल भतीजे!
भतीजा– चाचू! एक हफता होयगा। हमका सोवै क टाइम एक सपना आवा रहा। ओह मा हम तुमका भारत के परधानमन्तरी क रूप मा देखै रहे।
चाचा– सच्चो भतीजे?
भतीजा– हाँ चच्चू! इ तुम्हार भगवा गमछा के किरिया।
चाचा– अच्छा भतीजे! आगे का भवा?
भतीजा– अरे चाचू! तुमका देखि के विसवासे नय होत रहा। सपना मा हम देखा कि तुम ‘डी०एच०पी०’ पाल्टी के नेता चुन लिह गयौ।
चाचा– इ ‘डी०एच०पी० का होत हय भतीजा?
भतीजा– चाचू! इ तुम्हार बीच मा बिल्ली जस रास्ता काटै के आदत बहुतै खराब हय। अभी तो हम स्टोरी सुरू किहा रहे और तुम बीचै मा कूद पड़यो।
चाचा– अच्छा सोरी बेटा। आगे का इसटोरी सुनाव।
भतीजा– एक तो तुम्हार टोका-टाकी से हमार ‘मूड’ आफ होय गा, ओकै बाद बार-बार समझाये पर ‘बेटा’ कहै का रोग नै छूटै।
चाचा– भतीजे! जबानै तो हय, फिसल जात हय। अच्छा, आगे के इसटोरी बता रगड़ू?
भतीजा– चाचू! मूड आफ तौ आफ। अब सपना कल सुनिहौं।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; २१ जून, २०२० ईसवी)