व्यंग्य : E-पोथी अर्थात Google बाबा

चिन्तन : पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, ई-पोथी पढ़ि जिये।

बालपोथी (कक्षा एक की पुस्तक) से आरंभ शिक्षा ई -पोथी ने क्या ले लिया,चमत्कार हो गया। बस्ते बच्चों या लेखपालों को लादने से मुक्ति मिली। ई-कंटेंट, ई-कॉन्टैक्ट चतुर्दिक जड़ें जमा रहा है। मोटी पुस्तकों और रजिस्टरो के तत्व ज्ञान को ई-काल ने निर्दयता से बचा लिया है। ‘गूगल गुरु’ के सम्मुख सभी ई-शिष्य नतमस्तक हैं। रट कर अनेक परीक्षाएं पास कर चुका भलुआ ने सारी किताबें परचून की दुकान पर सिगरेटों से बदल लिया है। योग अयोग को E ने अयोग्य घोषित कर दिया है। ‘भुल्लन बुआ’ की शादी के बाजे अब E बाजों से अमेलित हो कबाड़ हो चलें हैं। E बटन आन, नाच गाना,खाना ,पाखाना सब E-सिस्टम से चालू है।

कैशियर नोटों से नहीं E-पेमेंट पर जोर देता है।
चोर,उचक्के,जेब कतरे काले दुशाले ओढ़ ई-अपराध शाखा मे नयी भर्तियां बढ़वा रहे हैं।

अंगूठा लगाकर ई-हाजिरी युवा भारत में अति उत्साह भर रही हैं। लड़ाकू लोग या मशीने ‘ई’ बटन से ऑन ऑफ़ फ़ीड हैं।
ई-शॉपिंग,मार्केटिँग के कारण मक्खू बनिया बोहनी के लिये दिन भर मक्खियां मारता है।

भूरा डॉक्टर E-ऐडवाइज़ देकर मोबाइल से बी•पी• व पल्स रेट नापने को कहता हैं। कोरोना ने ई-दर्शन, प्रार्थना और दान चालू करवा दिया हैं।

E-सब मेनटेन, इंटरटेन कर रहा हैं।
केवल बूढ़ा तोता खीसें निकाले अपना सिर पीट रहा है।

अवधेश कुमार शुक्ला
मूरख हिरदै
पुरुषोत्तम मास अष्टमी चंद्र
२४-०९-२०२०