
बोली :– भोजपुरी
परपंची काका – आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय
रोवल-गावल आ मनावल बाड़ा अझुराह काम हवे जी। एमे खूब गेँगोँ होखे लागेला। मेहररुआ त लपति-झपटि के माँग धोवो-कोख धोवो, तोरा अचके बान आ जाऊ, तेँ चौके पर राड़ि हो जइहे, तोर भतार मरि जाऊ, तेँ छछनत रहिए आ दुका-दुका कहि-सुना के टोला के बटोरि ले ली स। आ उनकर भतार लोग कवनो फेड़ा भा दुआरि के अरिया मे खइनी फटकत माजा मारे-लेखा लउकत रहलन स। आ लइका-फइका रोइ-गाइ के आपन-आपन महतारी-बहिन के लूगा-सलवार के हेठवा के छोरि पकड़ि के बईठ जालन स।
अरे ए दादा हो! कुछू मत पूछ, साला के महाभारतो ओकरा सोझे फेल बा। खुदे दरौपदी आ दुसासन बनि जालिन स ।
आ नइखे बुझात, त कवनो गँउवा में दसि दिनि रहि के देखि ल; सब सनीमा-लेखा जनाये लागी आ कवनो सनीमा के देखल भुलाइ जइब। ओइजा एक-से बढ़ि के तिरछोल आ तिरछोलिन बाड़िन स कि जनि पूछ। आ इहो बूझि ल, ओइजा एक-से बढ़ि के नमूनावाली मन्थरो बाड़िन स।
आ जान तार! ऊ फोकटे मे माजा देबेवाला 'देयाद-देयादिन मैच' हवे। ओकरा आगे टवण्टी-टवण्टी के मैचवो पानी भरे ला। बिना कवनो रेफरी के, कवनो नियम-कानून के, बिना कवनो सटेडियम आ बिना कवनो टिकसिया लिहले चौका, छक्का के माजा मिले ला। जब ऊ अचानके मैचवा सुरू होखे लागेला त हेने के आ होने के सब बेकतिया आपन गोड़वा मे बरेक मार देला, आ हो मैचवा के माजे मारे लागेला। आ जान तार हो! एगो कब गेना फेँकी उहे कब दोसरकी के गेना के उड़ावल सुरू करे लागी, इ केहू ना जाने ला।
आ साला के जब सब गेंग सेराइ जाला त उहे देयाद आ देयादिन दोसरके दिनवा से आइसे बतियावे लागे लीन स, जइसे कुछू भइले ना रहल हा।
बतकही मेटरो रेलगड़िया-लेखा सुरू हो जाला।
”का हो लँगटुआ के माई! सुननी हाँ की लँगटुआ के चाचा कालकाता से काल्हु आव तारे।”
” हँ हो गँढ़रुआ के माई! काल्हू अइहेँ; फोन कइले रहले हा।”
त चल! चलल जाऊ ‘देयाद-देयादिन मैच’ देखे।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ६ दिसम्बर, २०२४ ईसवी।)