बोल ए नेता जी! (पहिलका भाग)

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

हमार देसवा के बेचि-बाचि, खा गइल ए नेता जी!
असल आपन रूपवा, देखाइ गइल ए नेता जी!
बाड़ा भरोसिया कई के, तहरा के जितइनी हम,
आपन दाँव-पेंचवा, देखाइ गइल तू ए नेता जी!
बेसरम के झड़ियवा, सरमाये तहरा करनिया पर,
देसवा के बाड़ा दुरगतिया, कराइ गइल ए नेता जी!
असल के हव की नकल के, समझल आसान नइखे,
अपना में एगो अलगे देवता, कहाइ गइल ए नेता जी!
गिरगिटवा आपन गरदनिया, झुकवले देख भाग ता,
रंगवा ओकरो से जियिदा, बदलत गइल ए नेता जी!
ओस्ताद बाड़ा देखनी, बाकिर तहरा लेखा कहीं ना,
अब त नीचे से उपरि तक, लँगटे हो गइल ए नेता जी!
छौ सलवा से नीमन-नीमन, चीजुइया तहरा कँखिया में,
आ हमनी के पियाजू छीले के, रखि गइल ए नेता जी!
जेतना-जेतना करे के तू कहल, चुनइया भासड़वाँ में,
सब पर लतिया मारि, केने झोंकरा गइल ए नेता जी!
हमनी के सभ अजोरिया पर, तू अन्हरिया छवाइ के,
जिनगी गजन कइ के, केने निकलि गइल ए नेता जी!
असल बहुरूपिया कहीं, तोरा-जइसन लउकत नइखे,
चौकीदार के अड़वा में, राजा बनि गइल ए नेता जी!
कवनो करमवा ना छोड़ल, सिंघसनवाँ पर बइठे खातिर,
तहार गतर-गतर के पहचनिया, हो गइल अब ए नेता जी!
भरोसिया के जलिया में, सरसन्त से हमनी के अझुरवल,
जा सुखी ना रहब, इ सरपवा निकलि गइल ए नेता जी!

(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; ८ जुलाई, २०२० ईसवी)