बहकावे से दूर रह, तर्पण कर दो नाम

★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय

एक–
लँगोटी हैं चाट रहे, ले-ले गांधी-नाम।
पाँच साल के मोह मे, बन जाये कुछ काम।।
दो–
शासन आते हाथ मे, फिर गांधी-अपमान।
अन्तिम निर्णय कर बढ़ो, रहे न कोई नाम।।
तीन–
बहकावे से दूर रह, तर्पण कर दो नाम।
अहंकार मे चूर हैं, दिखे विधाता वाम।।
चार–
रावण अति विद्वान् था, पर था कपटी रूप।
शिव का अनुपम भक्त था, अन्त बुरा था भूप।।
पाँच–
मैली गंगा दिख रही, दिखे न तारणहार।
‘नमामि गंगे’ योजना, बनती सब पर भार।।
(सर्वाधिकार सुरक्षित– आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, प्रयागराज; १२ जनवरी, २०२२ ईसवी।)