इंसान और मोबाइल

आज ज़माना भी गज़ब ढा रहा है
मोबाइल तक ख़ुद को सीमित कर रहा है
घर में चार लोग, बैठे चार किनारे
एक दूसरे को देखे भी ना..
और चैट पर पूछ रहे इक दूजे का हाल,
वक्त नहीं है , का बहाना लगा कर
इंसान ख़ुद को इक डिब्बे में बंद कर रहा है..
आज ज़माना भी गज़ब ढा रहा है।
दया ह्रदय में कोई नहीं, ख़ुद तन्हा रह रहा
ख़ाली ख़ुद वास्तों को बनाकर,
फिर सोशल मिडिया पर तन्हाई के स्टेटस लगा रहा है…..
आज ज़माना भी गज़ब ढा रहा है।

प्रीति मधु शर्मा
लद्दा, घुमारवीं, बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश