कवि-सम्मेलन

मंच पर वे
द्विअर्थी गीत गा रहे थे;
लगातार ही
गिरते जा रहे थे;
ऐसे गिरे हुए कवि और संचालक
‘कविता’ को उठा रहे थे;
हद तो यह थी–
सब-के-सब श्रोतागण
कविता की इस दशा पर
ताली बजा रहे थे!

✍ घनश्याम अवस्थी
९४५१६०७७७२