खद्दर के सारे धर्म यहाँ, अब ‘कुर्सीवादी’ हो गये!

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय


‘परिवारवाद’ अलापते, वे परिवारवादी हो गये,
जाति-ज़हर घोलते वे, अब समाजवादी हो गये।
“बहुजन हिताय” ग़ायब, ख़ुद के हित हैं साधते,
पालकर अम्बेडकर भूत, वे दलितवादी हो गये।
राममन्दिर बिसर गये, अब ‘हिन्दू-हिन्दू’ जप रहे,
कैसे कहें सच में उनको , वे हिन्दूवादी हो गये।
खाते तो हैं भारत की, और गाते चीन-रूस की,
देखो भइया! कैसे-कैसे, अब साम्यवादी हो गये।
राष्ट्रवाद से जिनका कभी, गहरा नाता होता था,
छोड़ शरीर पूरा अब, जनाब पंजावादी हो गये।
निर्लज्ज-बेहया राजनीति को क़रीब से देखो,
खद्दर के सारे धर्म यहाँ, अब कुर्सीवादी हो गये।
(सर्वाधिकार सुरक्षित : डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय, इलाहाबाद; २७ जनवरी, २०१८ ई०)