दीपक श्रीवास्तव “दीपू”-

सुबह-सुबह वो कुण्डी खटका रहे
ना पूछने पर भी परिचय बता रहे
लगता है चुनाव आ रहे …
जो ना घूमते थे कभी गलियों में
अब वो बच्चो को टाफियां खिला रहे ।।
लगता है चुनाव आ रहे.
कभी हम थे चरणों में आज वो आ रहे ।
फिर बिना बात के खीसें निकाल रहे ।।
लगता है चुनाव आ रहे ….
हँसी आती है उनके अंदाज़ देखकर ।
फिर वो रिश्तों का जनाज़ा निकाल रहे ।।
लगता है चुनाव आ रहे …
आज मुस्कुराकर हाल-चाल पूछ रहे ।
और साथ में चुनाव निशान दिखा रहे ।।
लगता है चुनाव आ रहे …
कहते है पुराना भूल जाओ दादा
फिर से विकास की गंगा बहा रहे।
लगता है चुनाव आ रहे ..
हमको सब पता है अपने गॉव का
फिर भी बूथ का रास्ता बता रहे
लगता है चुनाव आ रहे …
जिनको अपना भविष्य खुद नहीं पता
और वो मेरा भविष्य बाँच रहे
लगता है चुनाव आ रहे…
हार जीत का पता नहीं उनको
ज्योतिष को हाँथ दिखा रहे।।
लगता है चुनाव आ रहे..
खीसें निकाल कर वो वोट की गुहार लगा रहे
अपनी जीत के लिए यज्ञ करा रहे ।।
लगता है चुनाव आ रहे…
हम तो पहले से ही जागरूक बैठे हैं ।
वो फिर अपनी गाड़ियों में धुंतुरु बंधा रहे ।।
लगता है चुनाव आ रहे…
इतना सब सुनकर हम भी मुस्करा दिए
वो अब भी अपनी गलतियों पर पर्दा डाल रहे।।
हाँ हाँ हाँ भैया चुनाव आ गए..