व्यंग्य : राजनीति की शुचिता अब तो नाला बनकर बहती है

……चुनाव-2019……

फूट रहे हैं बोल भयानक नेताओं के मुख से,
जनता हुई है आहत अपने नेताओं के रुख से।
बैन लगा योगी के ऊपर रोका गया छिछोरा आजम,
बड़ी निराली माया मेनका, मौन हुई अपने मुख से।।

एक तरफ सिद्धू ने भी माया सम सा बोला है,
दूध भरी गगरी के अन्दर नींबू जमके निचोड़ा है।
पाकिस्तान से दिल लगाकर भारत की बरबादी चाहें,
चाहत पूरी करने खातिर, मुस्लिम मन को टटोला है।।

निकल रही हैं कुछ तस्वीरें बरसों बरस पुरानी भी,
नए झोल संग बातें चलती बरसों बरस पुरानी भी।
उग्र हो गए रिश्ते अब टिकट नहीं मिल पाने पर,
बदल रहे हैं पार्टी नेता, बरसों बरस पुरानी भी।।

राजनीति की शुचिता अब तो नाला बनकर बहती है,
राम ही जाने किस कोने में सच्चाई दबकर रहती है।
झूंठो का अम्बर लगा है आधा ही सत्य बताते सब,
लोकतंत्र में लोकतंत्र ही, अब तो दुबक कर रहती है।।

होड़ मची है जनप्रिय बनकर, कद ऊँचा कर जाने की,
मर्यादा की तोड़ के सीमा, व्यक्ति-व्यक्ति बस जाने की।
सब आकर अपनों बीच बताते, दूजे का कद बौना है,
आज गुंडों में चाहत पनपी है, सत्ता में राम जाने की।।

नेता लोकतंत्र का लेकर सहारा, लोकतंत्र को रौंद रहे हैं,
बाहुबली को मिला टिकट तो बिजली बनकर कौंध रहे हैं।
हाथ जोड़कर घूम रहे हैं, यहाँ लूटने वाले बाहुबली भी,
वो भी संत सदृश बन घूमें, जो अपराधों की पौध रहे हैं।।

प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045