उत्तर प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पाण्डेय के श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जयंती पर विचार जो दीनदयाल जी की दूरदृष्टि व गूढ़ चिंतन की ओर इंगित करते हैं ।
“हम अतीत के गौरव से अनुप्राणित हैं, परंतु उसको भारत के राष्ट्र जीवन का सर्वोच्च बिंदु नहीं मानते हैं । हम वर्तमान के प्रति यथार्थवादी हैं, किन्तु उससे बंधे नही हैं । हमारी आँखों में भविष्य के स्वर्णिम स्वप्न हैं, किन्तु हम निद्रालु नहीं हैं बल्कि उन स्वप्नों को सच करने वाले कर्मयोगी हैं।
अनादि, अतीत, अस्थिर, वर्तमान और चिरंतन भविष्य की कालजयी संस्कृति के हम पुजारी हैं । विजय का विश्वास है, तपस्या का निश्चय लेकर चलें । वैचारिक श्रेष्ठता को अपने आचरण में अक्षरशः प्रतिबिम्बित करने वाले श्रद्धेय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी भारतवर्ष के सबसे यशस्वी, तेजस्वी व तपस्वी चिंतकों में से थे । जिनके दिए गए मार्गदर्शन के मूल में लोकमंगल व राष्ट्र का कल्याण समाहित है । राजनीति की उनकी व्याख्या में उन्होंने राष्ट्र को धर्म, आध्यात्म व संस्कृति का सनातन पुंज बताया । सत्ता व दल की राजनीति से ऊपर वे एक ऐसे राजनीतिक दर्शन के पक्षधर थे जो भारत की प्रकृति व परंपरा के अनुकूल हो व राष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति करने का सामर्थ्य रखता हो ।
उनकी जयंती के इस पावन पर्व पर , उनके दर्शन के ध्वजवाहकों का दायित्व लिए आइये प्रण लें कि राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के साथ साथ अपनी रुचि का व सामाजिक सरोकार का कम से कम एक विषय हम लेकर उसके लिए यथाशक्ति प्रयास करें । ये विषय – शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता या किसी अन्य क्षेत्र से हो सकते हैं । हमारे ऐसे निस्वार्थ प्रयास ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के प्रति सही श्रद्धांजलि होंगे । आदरणीय पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को मैं नमन करता हूँ । अब तक उनके दर्शन को ही जीवन का आधार मान चला हूँ व आगे भी इसका अनुपालन करूँगा ।