लघुकथा : परछाई

दीदी आज मुझे बहुत डर लग रहा है। रात में भूतों के साये की खबर पड़ी थी। रात में मुझे उस भूत ने बहुत डराया। मैं पूरी रात सो नहीं पाया। मैं बोलना चाहता था लेकिन मेरे मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे। क्या भूत आज भी आएगा। मुझे उठा ले जाएगा। नन्हें अमन की बात सुनी तो शीला अवाक रह गई। शीला बोली बेटे कोई भूत नहीं रहता। तूने दिन में जैसा पढ़ा वह याद रह गया। अब सो जा रात बहुत हो गई है।

समझा कर शीला सो गई लेकिन अमन की आंखों में नींद कहाँ? वह एकटक कमरे के पर्दे देख रहा था कि अचानक पर्दे के पीछे उसे परछाई नज़र आई। वह चिल्लाया। सारे घर वाले एकत्रित हो गए।

बेटे क्या देखा तूने। अमन बोला भूत मम्मी। वह पर्दे के पीछे रहता है। सभी ने उसको समझाया ये तेरी जीन्स पेण्ट की छाया है। पर्दा तो पंखे की हवा से हिलता नज़र आता है।तुम परछाई से न डरो।

कवि राजेश पुरोहित