
प्रश्न–
क्या साधारण मनुष्य बिना अधिकारों के किसी भी
निजी या व्यवहारिक/सामाजिक कर्तव्य करने हेतु उत्तरदायी है?
उत्तर–
नही, कोई भी मनुष्य अपने निजी कर्तव्यों हेतु पूर्णतः स्वतंत्र है वो भी तबतक जबतक कि व्यवहारिक/सामाजिक बाध्यता का हनन नही होता उससे।
अर्थात आप अपना हाँथ सार्वजनिक जगहों पर तबतक घुमाने हेतु स्वतंत्र हैं जबतक कि आपके हाँथ घुमाने पर किसी दूसरे की नाक बीच नही आती।
उदाहरण– धूम्रपान करना आपका निजी अधिकार की स्वतंत्रता का विषय है लेकिन सार्वजनिक जगहों पर जहाँ दूसरे लोगों को आपके धूम्रपान करने से तकलीफ़ हो सकती है तब वही आपकी निजी अधिकार की स्वतंत्रता व्यवहारिक/सामाजिक प्रतिबद्धता (कानून पालन) का विषय बन जाती है।
रही बात व्यवहारिक/सामाजिक कर्तव्यों के निर्वहन की तो वह कोई भी मनुष्य तभी करने हेतु बाध्य है जब उसे कोई उत्तरदायित्व/जिम्मेदारी प्रदान की गई हो अन्यथा नही।
प्रश्न–
क्या बिना उचित पात्रता परीक्षण किए
किसी भी मनुष्य को व्यवहारिक/सामाजिक कार्य हेतु जन्मतः कोई उपाधि या अधिकार दिया जाना सही है?
उत्तर–
नही, सैद्धांतिक रूप से मानवजीवनविकास के चारों आयामों (शारीरिक विकास-PQ, मानसिक विकास-IQ, भावनात्मक विकास-EQ, चेतनात्मक विकास-SQ) के प्रशिक्षण व परीक्षण उपरांत जो भी विकासक्रम को मनुष्य प्राप्त होता है उसी को आधार मानकर उसे व्यवहारिक/सामाजिक अधिकार या उत्तरदायित्व या जिम्मेदारी व उससे संबंधित संसाधन दिया जाना उचित है।
अन्यथा वह मनुष्य समाज का उत्थान करने के बजाय पतन का कारण बनता है।
नोट –
किसी भी राष्ट्र या राज्य में अपात्रों/कुपात्रों/अल्पपात्रों को कोई भी व्यवहारिक/सामाजिक कर्तव्य (चपरासी से लेकर राष्ट्रपति व पँच-सरपंच से लेकर प्रधानमंत्री पद तक) हेतु चयन करना विनाशकारी सिद्ध होता है।
प्रश्न–
तो क्या मौजूदा राजनैतिक पार्टियों में जो प्रचारक/कार्यकर्ता/प्रभारी/पदाधिकारी या नेतृत्वकर्मी चुने जाते हैं उनका उचित प्रशिक्षण व समुचित परीक्षण किए बिना ही उन्हें व्यवहारिक/सामाजिक/सार्वजनिक अधिकार व कर्तव्य दे दिए जाते हैं?
उत्तर–
हाँ, फिलहाल सभी राजनैतिक पार्टियों में मानवजीवनविकास के चारों आयामों (4 Dimensions of Human Life Development) से सम्बंधित प्रशिक्षण व तदोपरान्त परीक्षण की कोई समुचित व्यवस्था नही है।
यही कारण है कि मौजूदा राजनैतिक पार्टियों में “गधों से घोड़ों की रफ्तार की उम्मीद की जाती है और घोड़ों से गधों का बोझा उठवाया जाता है”।
और इसी कारण हमारे देश की शासनसत्ता व प्रशासनिक व्यवस्था पर मूर्ख अपात्रों व धूर्त कुपात्रों का जमावड़ा है।
चूँकि यह स्कूली पाठ्यक्रम का विषय है इसलिए विभिन्न सरकारों को चाहिए कि देश-प्रदेशों की शिक्षा व्यवस्था में इस प्राचीन सैद्धांतिक पद्धति को पुनः तुरंत लागू करना चाहिए, ताकि देश के विभिन्न सामाजिक/प्रशासनिक प्रतिष्ठानों/उपक्रमों/संस्थानों में एवं देश की राजनीति व मौजूदा राजनैतिक पार्टियों में सुपात्र को ही अधिकार व कर्तव्य निर्वहन का सुअवसर मिले।
इतना ही नही वे सभी अपात्र-कुपात्र-सुपात्र बिना सरफुटौहल के ही पदोन्नत व पदच्युत होते रहेंगे।
क्योंकि तब अधिकारों व कर्तव्यों को प्राप्त करने हेतु प्रतिद्वंदिता नही प्रतियोगिता को वरीयता दी जाएगी।
ध्यानाकर्षण;
सभी वरिष्ठ नेतागण/पदाधिकारीगण उपरोक्त विषय की गंभीरता को समझते हुए अपनी पार्टी के संगठनात्मक ढाँचे को मजबूत व सेवाभावी एवं समर्पित बनाने हेतु अवश्य ही मनन करें व इस मॉडल को लागू करवाएँ।
।।शुभकामना।।
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- (राम गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार, नोएडा)