
कभी तमन्ना थी कि हर कोई पहचाने मुझे,
अब ये चाहत है कि गुमनाम ही रहूं…!!
जीवन का सर्वश्रेष्ठ साल गुजर गया! एक ऐसा साल, जिसने मुझे मुझसे मिलाया! इस साल उन तमाम परिस्थितियों का सामना किया जो बिल्कुल ही अप्रत्याशित थीं! साल की शुरुआत में जब मैंने कुछ चीजों को छोड़कर नई चीजों को हासिल करने का निर्णय लिया तो चुनौती यह थी कि जो अन्य महत्वपूर्ण चीजें चल रही है उनके साथ ही यह सब कुछ करना संभव होगा? मैंने पूरी हिम्मत के साथ ही सोच लिया कि अब मैंने निर्णय ले लिया तो ले लिया, जो होगा सो देखा जाएगा!
यह पूरा साल में सपनों को सजाने, उनके लिए पूरी जी जान लगाकर कोशिश करना और फिर भी सपनों के पूरा ना होने पर टूट कर बिखर जाने का साल रहा! मैंने कुछ छोटे छोटे लक्ष्य निर्धारित किए थे पर उन लक्ष्यों में मैं एक भी हासिल नहीं कर पाया! दुख हुआ, होना भी चाहिए! जब भी हम किसी भी चीज को शिद्दत से चाहते हैं और उसके लिए पूरी जी जान लगाकर मेहनत करते हैं इसके बावजूद अगर वह चीज हमें हासिल नहीं होती है तो निराश होना हमारा स्वभाविक है! इन तमाम परिणामों के बाद मेरे आंखों से आंसू भी निकले और कई रातों तक नींद गायब रहीं! मैंने सिर्फ बेहतर करने के लिए कोशिशें की और यह पूरा साल महज कोशिशों में ही निकल गया!
कठिन वक्त बुरा नहीं होता; कठिन वक्त हिम्मत देता है! इस कठिन वक्त में जो लोग भी साथ आए वे लोग मेरे जीवन के सर्वश्रेष्ठ लोग हैं, सच कहूं तो जीवन के सबसे अच्छे दोस्त मुझे यही मिले क्योंकि उनका होना उन तमाम तनावपूर्ण स्थितियों का सबसे बड़ा हल है! मेरे व्यक्तित्व में जो परिवर्तन हुआ वह मेरे लिए बिल्कुल ही अप्रत्याशित था जब मैं आज से कुछ वर्ष पहले की तरह सोचता हूं तो फिर मैं खुद को इतना अलग पाता हूं जितना मैं कभी नहीं सोचा था! ये लोग कभी भी एक दूसरे को नकारात्मक रूप से जज नहीं करते! एक दूसरे के दुखों को समझते हैं और कभी उसका मजाक नहीं बनाते व ना ही किसी की क्षमता पर यह सवाल उठाते हैं बल्कि एक दूसरे की हिम्मत बनते हैं और एक दूसरे के चेहरे पर मुस्कान का कारण भी!
अब जीवन में कम लोग ही रहे तो अच्छा है पर जो भी रहे अपने रहे! मुझे यह पता है कि नजरें रखने वालों की संख्या ज्यादा होती है और खबर लेने वालों की कम! दुनिया के जिस स्वरुप का मुझे इस दौर में पता चला वह बस यही है कि-
“आपकी बातों का वजन आप की भौतिक उपलब्धियों के अनुक्रमानुपाती होता है!”
अपने दुखों से लड़ते हुए जब मैं इतनी हिम्मत बाद पाया कि मैं अपनी परिस्थितियों का सामना खुद और अकेले करूंगा और इसमें मैं किसी की मदद की अपेक्षा नहीं रखूंगा पर यदि किसी ने कर दिया तो उसका शुक्रिया रहेगा! इसके बाद जब मैं शहर की गलियों/सड़कों पर टहलने निकला तो मैंने संघर्ष करते हुए हर उस इंसान को देखा जिसके लिए जिंदगी में दो वक्त की रोटी भी बहुत कठिनाई से मिलती है! फुटपाथ पर सर्दी में सोते हुए लोग, अपनी हिम्मत से ज्यादा वजन खींचता हुआ कोई रिक्शा चालक, चेहरे पर झुर्रियां जमाए हुए छोटे-छोटे सामान देती हुई कोई बूढ़ी काकी, मकानों के निर्माण में लगे हुए मजदूर जिनके सिर पर ईटों की इतनी संख्या जितना मानव का सामान्य सिर ढो नहीं सकता!
जिंदगी में हर कोई संघर्ष कर रहा है और समाज के निर्माण में समाज के हर स्तर पर हर व्यक्ति बराबर का योगदान कर रहा है कुछ अपवाद को छोड़कर हर कोई सम्मान का बराबर हकदार है और किसी भी काम की कम कीमत नहीं है! जीवन में जिस दौर में हमारा अध्ययन है वहां धारणाओं का टूटना और बनना चलता रहेगा! एक चीज यही समझ में आई है कि कोई भी चीज अंतिम रूप से निर्णायक नहीं हो सकती कोई भी अवधारणा अंतिम रूप से सही नहीं हो सकती तो कई बार यह धारणा भी टूट सकती है क्योंकि कुछ चीजें हमेशा के लिए स्थाई हो जाएंगी!
फिलहाल बातें बहुत सारी हैं और अभी यह समय नहीं है की बहुत सारी चीजें लिखी जाए या कही जाए! जाते हुए साल का शुक्रिया और मैं अभी भी कई चीजों से लंबे ब्रेक पर हूं उम्मीद है यह आने वाला साल हम सब के लिए बेहतर होगा, बेहतर होना भी चाहिए!
अंतिम बात उसी पुरानी पंक्तियों के साथ
“जिसने निभाया साथ उस साथ का शुक्रिया
जिसने छुड़ाया हाथ उस हाथ का शुक्रिया!”
- हिमांशु शुक्ला ‘चंदन
प्रयागराज