“वह हँसती नहीँ, हँसी पीती है। मेरी दार्शनिकता से उत्पन्न उसकी अन्तः हँसी मुझ पर प्रभावी होने लगी। विगत पूरे वर्ष का अंश तो वही है। मुझे रास आने लगा। हम प्राय: अपने निशि-दिवा के आरम्भिक प्रहर ‘श्यामला हिल्स’ के नीरव-निस्तब्ध परिवेश मे व्यतीत किया करते थे। इस स्मृति से मुझे किंचित् आश्चर्य हुआ। मुझमे अब भी विगत और युग की भाव-प्रवणता शेष है। मेरे अन्तस् की अनेक प्रतिक्रियाएँ जीवन्त हो उठीँ। इस कक्ष मे प्रवेश करते ही सहसा अतीत की स्मृति-जन्य विकलता बाँधे नहीँ बँधती |
◆ टूटते सन्दर्भ (कहानी )– डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय