परशुराम जयंती विशेष : शस्त्र विद्या के महान गुरु भगवान परशुराम

  जब जब पृथ्वी पर अत्याचार बढ़ते है भगवान विष्णु नर रूप में अवतार लेते हैं। वे लीलाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा देते हैं। भगवान परशुराम जी भी भगवान विष्णु के छठे अवतार माने जीते हैं। इनके जन्म की अद्भुत कथा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदाग्नि द्वारा कराए गए पुत्रेष्ठि यज्ञ से प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप माता रेणुका के गर्भ से बैशाख शुक्ल तृतीया को  ग्राम मानपुर के जानापाँव पर्वत में हुआ था। जो आज मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में आता है। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार थे 

पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अंतर्गत राम जमदाग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिव द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम नाम से प्रसिद्ध हुए।

इनकी प्रारम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र व ऋचीक के आश्रम में हुई। ऋचीक ने इन्हें सारंग धनुष व ब्रह्मऋषि कश्यप से वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। कैलाश गिरी श्रृंग भगवान शंकर के आश्रम से विद्या प्राप्त की। वहाँ से इन्हें विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त हुआ।

शिवजी से इन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच स्तवराज स्रोत, मन्त्र कल्पतरु प्राप्त हुए। चक्र तीर्थ पर इन्होंने कठिन तप किया जिससे विष्णु प्रसन्न हुए उन्होंने इनको त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कलपान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वरदान दिया।

उसी समय हैहयवंश का राजा सहस्त्रार्जुन ने घोर तप किया भगवान दत्तात्रेय प्रसन्न हुए उन्होंने उसे एक हज़ार भुजाएं प्रदान की युद्ध मे किसी से भी न परास्त होने का वर दिया। एक दिन वह राजा संयोगवश आखेट खेलता जमदाग्नि मुनि के आश्रम आ पहुंचा। और देवराज इंद्र द्वारा जमदाग्नि को प्रदत्त कपिला कामधेनु ने उसका एवम समस्त सैन्य दल का आतिथ्य सत्कार किया । यह देखा तो वह लोभवश जमदग्नि की अवज्ञा करते हुए कामधेनु को बलपूर्वक छीन ले गया।

जब परशुराम जी को पता चला तो उन्होंने सहस्रार्जुन की फरसे के प्रहार से समस्त भुजाएं काट डाली। सिर को धड़ से अलग कर दिया। सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोष स्वरूप परशुराम जी की गैर मौजूदगी में उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी।

तेजस्वी ओजस्वी बलशाली थे परशुराम क्रोध से थरथर काँपते थे देवता।परशुराम जी ने 21 बार हैहयवंशी क्षत्रियो को धरती से समूल नष्ट किया था। इस हैहय क्षत्रिय समाज मे सहस्त्रार्जुन नाम का राजा हुआ था । परशुराम जी ने राजा इसके पुत्र व पोत्रो का वध किया था। उन्हें इसके लिए 21 बार युद्ध करना पड़ा। सहस्त्रार्जुन ने परशुराम जी के पिता का वध कर दिया था। उस समय परशुराम जी उपस्थित नहीं थे तब परशुराम जी की माँ भी चिता सजाकर चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गई थी। इस घोर घटना के कारण परशुराम जी को क्रोधित कर दिया। उसी समय उन्होंने संकल्प किया कि मैं हैहय वंश के सभी क्षत्रियों का विनाश करके ही दम लूँगा दुष्ट प्रवृति के क्षत्रियो से इसीलिए उन्होंने 21 बार युद्ध किया। सहस्त्रार्जुन की नगरी महिष्मति पर इन्होंने अधिकार कर लिया। बाद में उन्होंने कार्तवीर्यार्जुन का वध किया।

त्रेतायुग में सीता स्वयम्बर के समय भगवान राम द्वारा शिव जी के धनुष भंग के समय भी परशुराम जी पधारे। क्रोधित परशुराम जी आये तब “तेहि अवसर सुन सिव धनु भंगा आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।”

महाभारत काल मे भी गुरु द्रोणाचार्य को तमाम अस्त्र शस्त्र परशुराम जी ने ही दिए थे। परशुराम कर्ण के गुरु थे। उसे ब्रह्मास्त्र चलाना सिखाया था। यह जानते हुए भी परशुराम सिर्फ ब्राह्मण को ही अस्त्र शस्त्र सिखाते हैं। छल से कर्ण ने सारी विद्याएं सीखी थी। लेकिन पता चलने पर परशुराम जी बहुत कुपित हुए। इसलिए कर्ण को अस्त्र विद्या का लाभ नहीं मिला।

पिता के अनन्य भक्त थे परशुराम जी । एक बार की बात है श्रीमद्भागवत में लिखा है कि गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा तट पर जल लेने गई परशुराम जी की माता रेणुका आसक्त हो गई और कुछ देर तक वहीं रुक गई ।

हवनकाल व्यतीत हो जाने से क्रोधित मुनि जमदग्नि ने अपनी पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवम मानसिक व्यभिचार करने के दण्डस्वरूप सभी पुत्रो को माता रेणुका का वध करने की आज्ञा दी। लेकिन कोई भी पुत्र अपनी माता का वध करने के लिए तैयार नहीं हुआ। लेकिन परशुराम जी ने पिता के तपोबल से प्रभावित होकर उनकी आज्ञा का पालन करने के लिए माता का वध कर दिया। सभी भाइयो का भी वध कर डाला। उनके इस कार्य से जमदग्नि प्रसन्न हुए उनसे वर मांगने को कहा । परशुराम जी ने कहा मेरी माता व भाई पुनर्जीवित हो जायेें। उनके द्वारा वध किये जाने की स्मृति उन सभी की नष्ट हो जाये ऐसा वरदान पिता से लिया था।

डॉ. राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
कवि एवम वरिष्ठ साहित्यकार
भवानीमंडी