डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय जी की पाठशाला में भारतीय भाषा और बोलियों के बारे में विशेष बातें

एक प्रोफ़ेसर साहिब को ‘डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का उत्तर’


प्रोफेसर शब्द के ‘फ’ वर्ण पर ‘नुक़्त:’ लगेगा?
(प्रोफ़ेसर साहिब का कहना है कि मात्र अरबी के वर्णों में ही ‘नुक़्ता’ (शुद्ध नुक़्त:) का प्रयोग होता है।)
उन प्रोफ़ेसर साहिब के चुनौतीभरे प्रश्न का उत्तर देते हुए ‘डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय’ :—–
“आपके भीतर का भी ‘प्रोफ़ेसर’ जग गया है। चिन्ता की कोई बात नहीं, अभी ‘सो’ जायेगा क्योंकि आपने मेरे ज़ख़्म को कुरेद कर ‘अतीत’ में पहुँचा दिया है। ‘डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय’ अकेले ही ‘चक्रव्यूह’ को छिन्न-भिन्न करने में समर्थ है।
पहले आते हैं, ‘विषय’ पर :——
भारतीय भाषा और बोलियों के अतिरिक्त जितनी भी भाषाएँ हैं, उनमें ‘उच्चारण’ के अनुसार ‘नुक़्त:’ का प्रयोग किया जाता है। विस्तार में नहीं जाना चाहता हूँ। Is (इज़), Does (डज़), News (न्यूज़) आदिक के साथ ‘नुक़्त:’ का प्रयोग किया जाता है। क्या ये ‘अरबी-भाषा’ के वर्ण हैं? ‘प्रोफ़ेसर’ के साथ भी ‘नुक़्त:’ प्रयुक्त होता है। यह ‘लैटिन’ भाषा के ‘प्रोफ़ेसस’ से लिया गया है। सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने के लिए ‘ऑक्सफोर्ड’, ‘चेम्बर्स’, ‘केम्ब्रिज’ आदिक के शब्दकोश पर दृष्टि निक्षेपित कीजिए।
हम आमने-सामने होते तो ध्वनि और वर्ण-अक्षर-मात्राविज्ञान पर संवाद करते। कितना प्यारा दृश्य होता! इस विषय पर अभी इतना ही।
प्रमाण नीचे है; ध्यानपूर्वक देखिएगा।
अब इसी प्रसंग में दूसरी बात :—-
मैं जब अस्सी के दशक में रीवा में ‘दैनिक जागरण’ से सम्बद्ध था तब टी०आर०एस० कॉलेज, जी०डी०सी०, साइंस कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय आदिक के महिला-पुरुष प्रोफ़ेसर, वहाँ के माने-जाने विद्वत्गण तथा विद्यार्थियों के संस्कृत, हिन्दी, अँगरेजी, अरबी-फ़ारसी शब्दों के लेखन में प्रचुर मात्रा में व्याप्त अशुद्धियों को देखकर हतप्रभ रह जाता था। मुझे एक आलेख को सम्पादित करने में लगभग एक घण्टा लग जाता था इसीलिए मुझे ये सारे कार्य अपने आवास पर करने पड़ते थे; तब आप भी एक लेखक हुआ करते थे और मेरे सम्पर्क में भी थे।
उन्हीं दिनों टी०आर०एस० कॉलेज में मैंने मात्र डॉ० ज्ञानावती अवस्थी जी के वैदुष्य से प्रभावित होकर स्नातकोत्तर (हिन्दी) में प्रवेश किया था। कुछ माह-बाद जब मैंने वहाँ के अध्यापकगण का उच्चारणदोष और अध्यापनशैली देखी तब ‘मोहभंग’ हो गया और मैंने हमेशा के लिए ‘दूरी’ बना ली। मैंने अन्यत्र से अपनी उच्च शिक्षा पूर्ण की। मुझे लगता था, उनसे अत्युत्तम तो मेरा स्वयं का विवेक है। मैं चाहता था कि रीवा के समस्त ‘प्रोफ़ेसरगण’ का एक भाषिक कर्मशाला आयोजित कराऊँ परन्तु तब प्रतिदिन समाचारपत्र के दो पृष्ठों और रविवार के पाँच पृष्ठों का अकेले ही लेखन-सम्पादन-साज-सज्जा आदिक करता था; उनके अतिरिक्त नवोदित और सम्मानित हस्ताक्षरों के घर जाकर मैं ही भेंटवार्त्ता किया करता था।
आप-जैसे प्रोफ़ेसर लोग यदि अपने विद्यार्थियों को वाचिक और लिखित भाषाओं की अशुद्धियों के सम्यक् ज्ञान कराये होते तो आज देश के विद्यार्थियों का ज्ञान-स्तर शीर्ष पर रहता। सच तो यह है, ‘पढ़ाई कम-राजनीति अधिक रही है।
अब आपके उपर्युक्त लेखन को मैं संशोधित कर रहा हूँ, ध्यानपूर्वक समझिएगा :—- भाई! आपने ‘प्रोफ़ेसर टंकित किया है; याने अँगरेज़ी के संज्ञा-शब्द में ‘नुक्त:’ लगाया है, जबकि नुक्त: का प्रयोग ‘अरबी-वर्ण’ में होता है।