श्रीरामचरितमानस और उनके अलौकिक प्रणेता

रामभक्त श्रीगोस्वामी तुलसीदास पर साक्षात् वाग्देवी की कृपा थी इसमें कोई भी संशय नहीं। बिरले ही रहे होंगे जिनकी काव्य रचना नें एक ग्रन्थ का रूप लिया हो। श्रीरामचरितमानस जी वास्तव में एक आशीर्वादात्मक ग्रन्थ है मुझसे यदि कोई पूछे तो मैं यही कहूंगा कि इसमें मुझे समस्त देव और तीर्थों का दर्शन प्राप्त होता है, चाहे तीर्थराज प्रयागराज हो या तपस्थली नैमिषारण्य। किसी हरिप्रेमी को मानस पढ़ते वक्त सम्बन्धित स्थान या घटना के चलचित्र हृदय में ठीक वैसे ही उतरने लगते हैं जैसे तत्कालीन वो दृश्य थे।

मेरे जैसे विषयी पुरुष को अधिक तो ज्ञात नहीं पर यह अवश्य ज्ञात है कि इस धरा पर राम को सबसे सुंदर लिखने में कोई सामर्थ्य जुटा पाया है तो वह श्री तुलसीदासजी ही हैं। मायाकृत संसार सागर से पार लगाने के लिए सर्वश्रेष्ठ साधन श्रीरामचरितमानस जी ही हैं।

इस ग्रन्थ में कई जीवनोपयोगी महत्वपूर्ण बातें सीखने योग्य हैं। यथा—
1- पुत्र के माता-पिता के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं?
2- भाई का जीवन में कितना योगदान होता है?
3- ग्रहस्थ संन्यासी कैसे होने चाहिए?
4- एक राजा का प्रजा के प्रति कौन से उत्तरदायित्व होते हैं
5- गुरु-शिष्य के सम्बन्ध कितने मर्यादित होने चाहिए?
ऐसी ही बहुत-सी महत्त्वपूर्ण बातें हैं जो हम सबके लिए सीखने योग्य हैं।

राजा जनक को ऋषि विश्वामित्र ने जब रामजी का परिचय दिया तब उन्होंने मुस्कुराते हुए यही कहा कि इनको देखते ही अत्यंत प्रेम के वश होकर मेरे मन ने भी जबरदस्ती ब्रह्मसुख को त्याग दिया है।

इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा।
बरबस ब्रह्मसुखहि मन त्यागा॥

उमा-शंभु के सुंदर संवाद को श्री गोस्वामीजी ने बहुत ही उत्तम तरीके से लिखा है प्रशंसा के लिए हमारे पास ऐसा कोई शब्द नहीं है। अतः निर्वाक हूँ।

ग्राम्यभाषा में रचित यह मनोहर काव्य कल्याण करने वाला है। देव इच्छा से कलियुग में यदि गोस्वामी जी न जन्मते तो आबालवृद्ध के मुखों पर इतनी सरलता से “मङ्गल भवन अमङ्गल हारी” कौन ला सकता था?
झोपड़ी से लेकर बड़े-बड़े प्रासादों तक ग्राम्यभाषा में उपजी यह मानस भक्तों के मांगल्य का हेतु है। यह रामकथा भगवान शिव को नर्मदा जी के समान प्यारी है सभी सिद्धियों तथा सुखों को देने वाली है।

सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी।
सकल सिद्धि सुख संपति रासी।।

अनूठा शिवविवाह, रामविवाह और भरतचरित्र जैसे श्रेष्ठ प्रसंग का ऐसा उत्तम वास्तुकार मेरी नजर में कोई दूसरा नहीं।
जैसे दृश्य दृग पर, मीन जल पर और प्रभा सूर्य से अस्तित्व में रहते हैं वैसे ही श्रीगोस्वामी जी इस दिव्य रामकथा को लिखने में आस्थान्वित थे।

अंत में सभी से यही कहना चाहूंगा इस मानस जैसे दिव्यकृपा ग्रन्थ को आप सब अतिआदर के साथ ग्रहण करें और इसके एक-आध आचरण को अपने जीवन में उतारकर स्वयं को धन्य कर सकें तो अवश्य करें।

  --अभिजीत मिश्र, ग्राम-बालामऊ, जिला-हरदोई