सई नदी की करुण कथा : पौराणिक और ऐतिहासिक नदी मर रही है

कहानी – “सरहद”

पायल रॉय, संस्थापक – “शिक्षा एक उज्ज्वल भविष्य की ओर” (युवा समाजसेविका, जबलपुर, म. प्र.)

शाम का समय हो चला था। आज बादल कुछ ज्यादा ही साफ दिखाई दे रहे थे और हमेशा की तरह मैं सरहद के पास अपनी गश्त में था। अचानक मेरी नजर उस सिपाही पर पड़ी जो हमेशा बड़े ही जोश में दिखाई देता था। नया था शायद इसीलिए बड़ा ही जोश मैं रहता था। पर आज कुछ ज्यादा ही मुरझाया सा जान पड़ता है! पता नहीं क्यूँ अनायास ही उससे पूछ बैठा “क्या जनाब सब खैरियत? आज बड़े ही रूखे जान पड़ रहे हो?”

उसने कहा- हमारी बेगम का खत आया है, कहती हैं कि अम्मीजान की बीमारी बहुत बढ़ चुकी है और सब कुछ खैरियत में नहीं है। आख़री नज़र देख ले अम्मी को तो बेहतर।

मैंने कहा- तब तो तुम्हें जाना चाहिए! वैसे पिता तो होंगे न घर पर?

उसने कहा- नहीं! उनका इंतकाल हो चुका है। हमें तो शक्ल भी याद नहीं उनकी! घर पर अम्मी है, हमारी बेगम और हमारा 4 साल का बेटा…..। वैसे हमारी बेगम को आठवाँ महीना चल रहा है। अल्ला ताला की दुआ से जल्द ही खुशहाली होगी। (कह कर अपने परिवार की तस्वीर दिखाने लगा)

न जाने क्यों मैं भी खुश सा दिखने लगा?

मैंने कहा- बहुत सुंदर बच्चा है तुम्हारा। बहुत शैतान होगा?

उसने कहा- अल्ला ताला ने उसे जुबान नहीं दी। बहुत शांत बच्चा है। अब तो बस अल्लाह का सहारा। आप सुनाएँ कुछ अपने परिवार के बारे में।

मैंने कहा- हा.. हा.. हा… मेरा कोई परिवार नहीं। माता पिता तो शादी के कुछ साल बाद गुज़र गये और बीवी बच्चे की राह तकते हुए गुजर गयी। अब बस कुछ दिनों बाद रिटायरमेंट है़……(कि इतने में ही गश्त बदलने की विसिल सुनाई दी)।

और मैंने कहा मिलते हैं… प्रार्थना करूँगा तुम्हारी माँ से तुम जल्दी मिलो।

इतना कहकर मैं वहाँ से चल दिया। उसे भी दिल हल्का लगा अपनी परेशानी बता कर।

खाना खाकर मैं अपने डेरे मैं जाकर सो गया।

(सुबह 6 बजे बहुत जोर-जोर से हार्न सुनाई देने लगता है)

(बहुत सारी चिल्लाने की आवाजें सुनाई देती है, हम पर हमला हुआ है, जल्दी अपने हथियार लो, हमला हुआ है।)

मैं जल्दी से उठकर खड़ा हुआ और टोली के साथ युद्ध स्थल पर जा पहुँचा।

हिन्दुस्तान बहुत अंदर घुस चुका था पाकिस्तान के और मैं टोली के साथ धड़ाधड़ गोलियाँ बरसा रहा था।

तभी अचानक मेरे सामने वो सिपाही था। मुझे महसूस हुआ उसकी गोलियाँ खत्म हो चुकी हैं। मैं उसे एकटक देखने लगा। असमंजस में था कि अपने देश के लिए इसे मार दूँ या इंसानियत के लिए जाने दूँ। नहीं मै गद्दार नहीं! पर इसकी माँ को इसे देखना है और इसका वह मूक या वो अजन्मा बच्चा! नहीं…।

और अचानक उसके पीछे से आते एक साथी ने मुझ पर गोली चला दी।

गोली मेरे सीने को फाड़ती हुई घुस गयी और मेरा शरीर घम्म से घरती पर जा गिरा और मैं आज़ाद था।