ग्राम्यजीवन के शोषण का यथार्थ चित्रण करता, पन्त जी का साहित्य

सुमित्रानन्दन पन्त की जन्मतिथि पर ‘सर्जनपीठ’ का राष्ट्रीय आयोजन

बौद्धिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक तथा सामाजिक मंच ‘सर्जनपीठ’ के तत्त्वावधान मे २० मई को ‘सारस्वत सदन’, आलोपीबाग़, प्रयागराज से एक आन्तर्जालिक राष्ट्रीय बौद्धिक परिसंवाद का आयोजन किया गया।

इविंग क्रिश्चयन कॉलेज, प्रयागराज के पूर्व-सहायक प्राध्यापक डॉ० पद्माकर मिश्र ने मुख्य अतिथि के रूप मे वक्तव्य प्रस्तुत किया, “पन्त जी की कविता पर विहंगम दृष्टि डाली जाये तो वह कई रूपोँ मे मिलती है। वस्तुत: वह पथ के मोड़ोँ को पार करती हुई गतिशील है। ‘वीणा’ और ‘ग्रन्थि’ उनकी प्रारम्भिक कृतियाँ हैँ, जिनमे प्रकृति के प्रति उत्कट् प्रेमभावना का आकर्षण है। पन्त जी प्रकृति को ‘नारी’ के रूप मे देखते हैं।”

विशिष्ट अतिथि के रूप मे जैन शोध अकादमी, अलीगढ़ की सचिव डॉ० कनुप्रिया प्रचण्डिया कहती हैं, “पन्त जी के काव्यवैभव का स्वर प्रकृति के विशाल प्रांगण से प्रारम्भ होकर, प्रेम की परिधियोँ मे श्वास लेकर लोककल्याण के पथानुगामी साम्यवाद को स्वीकार करता हुआ मानवात्मा और सांस्कृतिक उत्थान के लिए अध्यात्म मे विश्राम लेता है।”

परिसंवाद-संयोजक, भाषाविज्ञानी आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय का मत है, “आज ‘ग्राम्या’ जीवन्त लक्षित होती है, जिसके माध्यम से पन्त जी कहते हैं, “यह भावी संस्कृति श्रमजीवी संस्कृति होगी, इसीलिए कवि श्रम की महिमा का गीत गाता है। वर्ग-सभ्यता ने ऐसी श्रेणियाँ गठित की हैं, जो दूसरों के श्रम पर जीती हैं; परन्तु यह सभ्यता और संस्कृति मात्र प्रवंचनामात्र है, जिसे हम आज श्रमजीवियों की श्रमशीलता और कष्टशीलता देखकर अनुभव कर लेते हैँ।”

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर मे सहायक आचार्य डॉ० सूर्यकान्त त्रिपाठी के अनुसार, “महाकवि यशःशरीर के रूप मे अमर होता है। पं० सुमित्रानन्दन पन्त अपनी काव्य-सर्जना के माध्यम से आज भी हम सब के बीच विद्यमान हैं ।वे एक शक्तिसम्पन्न कवि थे। उनमें प्रकृति देवी की अप्रतिम सुषमा को परखने की प्रतिभा थी।”

  शान्ति निकेतन कालेज आफ बिजनेस मैनेजमेंट ऐण्ड कम्प्यूटर साइंस, आगरा की प्राचार्य डॉ० मधु त्रिवेदी की अवधारणा है, "पन्त जी गोस्वामी तुलसीदास की तरह समन्वयवादी कवि हैं। उनकी समन्वय-भावना में एक ओर मार्क्सवाद और गांधीवाद का मेल दिखायी देता है तो दूजे ओर अध्यात्यवाद और भौतिकवाद का भी स्थान है।"

दिल्ली से इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला अकादमी से डॉ० प्रभात ओझा का मत है, “इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र, फिर मीडियाकर्मी के नाते उन्हें देखा-सुना। गौर वर्ण और कन्धों तक झूलते बालों के बीच जब भी उनकी वाणी प्रस्फुटित हुई, कुछ अलग एहसास करा गयी।”