गज़ल- मैं औरत हूँ तो औरत हूँ
राघवेन्द्र कुमार “राघव”- तपिश ज़ज़्बातों की मन में, न जाने क्यों बढ़ी जाती ? मैं औरत हूँ तो औरत हूँ, मग़र अबला कही जाती । उजाला घर मे जो करती, उजालों से ही डरती है […]
राघवेन्द्र कुमार “राघव”- तपिश ज़ज़्बातों की मन में, न जाने क्यों बढ़ी जाती ? मैं औरत हूँ तो औरत हूँ, मग़र अबला कही जाती । उजाला घर मे जो करती, उजालों से ही डरती है […]