बेचैन धार नदी-संग करवटें बदलती रही
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय•••••••••••••••••••••••••••••••••••• महब्बत को क़ब्रगाह मे दफ़्न कर लौटे हैं, ज़ख़्मी पाँव अभी, थोड़ी साँस उधार मे दे दो, सुबूत हैं आख़िरी दाँव अभी। परछाईं लगना चाहती है गले, शिद्दत से बूढ़े […]