ताल ठोँकती हर नदी, डूब रहा हर गेह
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–टूट रहे तटबन्ध हैँ, जल का हाहाकार।प्रलय आँख मे नाचता, लिये मृत्यु आकार।।दो–चाहत पूरी कर रहा, ले निर्मम-सा रूप।जनता मरती देश मे, निर्दय कितना भूप।।तीन–हा धिक्-हा धिक्! कर रही, क्रन्दन […]