धरती की पीड़ा
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- हे कविते! सुन लो करुण पुकार, अचला धोती दृग निज अश्रुधार। माँ हूँ मैं यह कहते दानव मानव, नित करते फिर क्यों बंटाधार ? कविते! कविते! हे! कविते , मैं देती नित […]
जगन्नाथ शुक्ल, इलाहाबाद- हे कविते! सुन लो करुण पुकार, अचला धोती दृग निज अश्रुधार। माँ हूँ मैं यह कहते दानव मानव, नित करते फिर क्यों बंटाधार ? कविते! कविते! हे! कविते , मैं देती नित […]