देखो जनता बँट गयी, धर्म, वर्ग औ’ जाति

January 31, 2024 0

——-० यथार्थ-दर्शन ०——- ● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय••••••••••••••••••••••••••••••••••••••• एक–राजनीति की कोठरी, कितनी है बदरंग!चेतन-पक्ष अलक्ष है, कूप पड़ी है भंग।।दो–जनहित दिखता है कहाँ, प्रतिनिधि बिकते रोज़।गुण्डे-लम्पट हैं दिखे, कौन करेगा खोज?तीन–दिखे कुशासन देश मे, न्याय […]

देव और मानव बनने के लिए प्रेम और न्याय का धर्म

March 7, 2023 0

प्रश्न:-हमारे धर्मशास्त्रों में नर और नारायण का वर्णन है, नारायण तो स्वयं भगवान विष्णु हैं तो नर कौन है ..?साधारण बोलचाल की भाषा में नारी शब्द का इस्तेमाल किया जाता है।तो नारी का क्या अर्थ […]

विश्वास और अविश्वास के बीच की कड़ी है ‘धर्म’

January 13, 2023 0

धर्म तो विश्वास और अविश्वास के बीच की कड़ी है!ये हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करती है..? धर्म किसी के विश्वास और अविश्वास का मोहताज नहीं होता।बल्कि धर्म तो संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तु है। […]

धर्म केवल एक सनातन-धर्म है

May 16, 2022 0

राघवेन्द्र कुमार त्रिपाठी ‘राघव’–  निर्विवाद रूप से ईश्वर एक है। इसी सत्य के आधार पर मनुष्य अपनी संस्कृति, धरती, जाति, भाषा और विश्वास (मान्यता) के अनुसार  ईश्वर, भगवान, ख़ुदा, अल्लाह, परमात्मा, गॉड आदि अलग-अलग नामो […]

‘धर्म’-‘मज़हब’-‘रीलिजन’ के विद्रूप चेहरे

July 23, 2020 0

— आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय सृष्टि का जो अंश,पल रहा है तुम्हारी कोख में;उसे न तो ‘राम’ की माला पहनानाऔर न बाँधना ‘रहीम’ की ताबीज़;उसे रहने देना सिर्फ़ उस इंसान की सन्तान,जिसका न कोई ‘धर्म’, […]

सम्बन्ध-सन्दर्भ में ‘धर्म’ की भाव-प्रवणता

August 6, 2018 0

डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ‘धर्मभाई’ का अर्थ है, ‘धारण किया हुआ भाई’। जैसे आपने गुण-दोष को धारण कर लिया है वैसे ही आपने उस ‘भाई’ को भी धारण कर लिया है– मनसा-वाचा-कर्मणा। वह धर्म भाई ‘सगे […]

लोक संसद में आज का प्रश्न- ‘हिन्दू-समाज’ जयश्री राम’ के स्थान पर ‘जयश्री भरत’ क्यों नहीं कहता?

October 30, 2017 0

संचालक- डॉ. पृथ्वीनाथ पाण्डेय लोक संसद में आज का प्रश्न- ‘हिन्दू-समाज’ जयश्री राम’ के स्थान पर ‘जयश्री भरत’ क्यों नहीं कहता? देवेन्द्र कुमार तिवारी- सत्य हैं, इससे देश की एकता और अखंडता को बल मिलेगा। प्रदीप […]