प्रकृति मौन दिखती अभी, भरता पाप का घट
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–नफ़्रत की है आग लगी, घी डालें हर ओर।महँगाई डायन दिखे, कोई ओर न छोर।।दो–कैसा अनुरागी बना, जनता पूजे पाँव।हरियाली बीहड़ बनी, उजड़ रहा हर गाँव।।तीन–मक्कारी हर सू दिखे, दिखे […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–नफ़्रत की है आग लगी, घी डालें हर ओर।महँगाई डायन दिखे, कोई ओर न छोर।।दो–कैसा अनुरागी बना, जनता पूजे पाँव।हरियाली बीहड़ बनी, उजड़ रहा हर गाँव।।तीन–मक्कारी हर सू दिखे, दिखे […]
★ आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय समय आया, कर विचार।देश की जनता है लाचार।समय-बाण से बेधो इतना,राजनीति बदले आचार।खद्दर शर्म से पानी-पानी,नहीं कहीं सुख का आधार।महँगाई से त्रस्त है जनता,सरकारें धरती पर भार।नेताओं से त्रस्त है […]
सन्त समीर जी (वरिष्ठ पत्रकार व प्राकृतिक चिकित्सक) स्वामी विवेकानन्द जब अमेरिका गए थे, तब की एक घटना है। एक बार वे एक पार्क में अपने शिष्यों को वेदांत और राजयोग सिखा रहे थे। उसी […]