बचपन-आँसू सूखते, बिलख रहा है छोह!
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–हर-हर, हर-हर हो रहा, ठहर गया है देश।जलधारा उछाल लिये, प्रश्न कर रही पेश।।दो–ताला जड़ा ज़बान पे, निर्दयता हर ओर।जनता करती त्राहि है, भय का ओर न छोर।।तीन–क्रन्दन-सिसकी हर तरफ़़, […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक–हर-हर, हर-हर हो रहा, ठहर गया है देश।जलधारा उछाल लिये, प्रश्न कर रही पेश।।दो–ताला जड़ा ज़बान पे, निर्दयता हर ओर।जनता करती त्राहि है, भय का ओर न छोर।।तीन–क्रन्दन-सिसकी हर तरफ़़, […]