एक अभिव्यक्ति :- रफ़्ता-रफ़्ता पा गया हूँ, मंज़िले मक़सूद
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय फ़नकार हो तो अपना फ़न दिखाओ न, महज़ बातों में मुझको अब उलझाओ न। देखो! मंज़िल आर्ज़ू अब है कर रही मेरी मुझे बढ़ने दो, अब मुझको फुसलाओ न। कुछ बातें हैं […]
डॉ० पृथ्वीनाथ पाण्डेय फ़नकार हो तो अपना फ़न दिखाओ न, महज़ बातों में मुझको अब उलझाओ न। देखो! मंज़िल आर्ज़ू अब है कर रही मेरी मुझे बढ़ने दो, अब मुझको फुसलाओ न। कुछ बातें हैं […]