हंस वंश अवतंस-सम, मुरली की है तान
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक– दिल दिमाग़ से दूर है, मति-गति भी है दूर। बन्द दिखें आँखें खुलीं, अच्छे हमसे सूर।। दो– रूप रूपसी से कहे, रुतबा का नहिं जोड़। रूप-रंग१ रचना रचे, रूपक […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय एक– दिल दिमाग़ से दूर है, मति-गति भी है दूर। बन्द दिखें आँखें खुलीं, अच्छे हमसे सूर।। दो– रूप रूपसी से कहे, रुतबा का नहिं जोड़। रूप-रंग१ रचना रचे, रूपक […]