निजीकरण से त्रस्त है, शिक्षित युवा समाज
अभी नहीं मैदान तय, ठोंक रहे हैं ताल।मुझको भी भविष्य में शायद, मिल जाये कुछ माल ।। चढ़ा बुखार चुनाव का, कर्मठ हुए अधीर ।नौसिखिये भी हो चले, सैद्धांतिक वीर ।। सेवा करूँ समाज की, […]
अभी नहीं मैदान तय, ठोंक रहे हैं ताल।मुझको भी भविष्य में शायद, मिल जाये कुछ माल ।। चढ़ा बुखार चुनाव का, कर्मठ हुए अधीर ।नौसिखिये भी हो चले, सैद्धांतिक वीर ।। सेवा करूँ समाज की, […]