स्वजन बनते दुर्जन
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय आस्थाविश्वासआश्वासनश्रद्धाभक्तिसमर्पणसाहित्य के विषय हैंऔर सिद्धान्त के भी।व्यवहार के जगत् मेइनका प्रयोजनछल-प्रपंच से है।स्वजनदुर्जन बन जाते हैं।एक निर्वात् दृष्टिबोधप्रकट होता है,और चरित्र परदृष्टि-अनुलेपन कराकरअन्तर्हित हो जाता है।अकस्मात् चिर-संचितक्षणिक विश्वास भीकापुरुष बन […]