कवि! हरे-भरे खेतों मे चल
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कवि! हरे-भरे खेतों मे चल।तू देख चुका शहरी जीवन,वैभव के सब नन्दन-कानन।क्या देखा-क्या पाया तूने,धनिकों के उर का सूनापन?अब उठा क़दम, दोपहर हुआ,उन दु:खियों के आँगन मे चल।कवि! हरे-भरे खेतों […]
● आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय कवि! हरे-भरे खेतों मे चल।तू देख चुका शहरी जीवन,वैभव के सब नन्दन-कानन।क्या देखा-क्या पाया तूने,धनिकों के उर का सूनापन?अब उठा क़दम, दोपहर हुआ,उन दु:खियों के आँगन मे चल।कवि! हरे-भरे खेतों […]